Monday, August 11, 2014

वंदनीय है उपनिषत , यामे ज्ञान महान।
श्याम प्रेम बिनु ज्ञान सो , प्राणहीन तनु जान।।८८।।

भावार्थ - उपनिषत् भगवत्स्वरूप हैं। अतः वन्दनीय हैं। उनमें अनंत ज्ञान भरा पड़ा है। किन्तु उनसे श्रीकृष्ण प्रेम नहीं बढ़ता। अतः वह ज्ञान , प्राणहीन शरीर के समान है।
भक्ति शतक (दोहा - 88)
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)

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