Monday, August 11, 2014

Out of 8,400,000 varieties of living beings, humans are the only children of God who have been granted the privilege of performing fruit-bearing actions. Since you cannot undo what you have done already, stop crying over destiny and focus instead on the actions you are free to perform in this life, for they will be called your destiny in the future.
You have tremendous power. All other creatures, including heavenly gods, envy what you have: the power to create your own destiny.
..........SHRI MAHARAJJI.

लगी री मोहिं, श्याम – दृगन की चोट |
पलक न हाय ! पलक – दृग लागत, भये पलक ते ओट |
व्याकुल बिनु अपराध प्रान भये, कीन दृगन ने खोट |
मिल्यो जाय अब मनहुँ दृगन सों, तोरि कानि – कुल – कोट |
अब हौं विलपति प्रति कुंजन, उर, धरे विरह की पोट |
तितनोइ खोट ‘कृपालु’ नंद को, ढोटा, जितनोइ छोट ||

भावार्थ – एक विरहिणी कहती है कि मुझे श्यामसुन्दर की आँखों की चोट ने घायल कर दिया है | अब उनके पलकों से ओट होते ही एक क्षण को भी चैन नहीं पड़ता एवं आँखों की नींद भी चली गयी | यद्यपि लड़कपन या उद्दण्डता मेरी आँखों ने ही की थी, मेरे प्राणों का कोई भी दोष नहीं था | फिर भी ‘और करे अपराध कोउ और पाव फलभोग’ के अनुसार अब प्राण भी अत्यन्त व्याकुल हो रहे हैं | मन ने भी प्राणों से विश्वासघात किया एवं वंश परम्परा के मर्यादा – रूपी किले को तोड़कर आँखों से जा मिला | अब मैं हृदय में विरह का बोझ लिए हुए एवं प्रत्येक कुंज में प्यारे श्यामसुन्दर से मिलन के लिए विलाप करती हुई भटक रही हूँ | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि हाय ! हाय !! यह नन्द ढोटा जितना ही छोटा है उतना ही खोटा भी है |
( प्रेम रस मदिरा विरह - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

मन न मनन करे श्याम अरु श्यामा।
नमन न मन करे पद गुरु धामा।।

man na manan kare shyam aru shyama.
naman n man kare pad guru dhama.

My self-willed mind neither meditates on Shyama Shyam nor does it surrender to the Guru.
Shyama Shyam Geet - 88
-Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
Radha Govind Samiti.

"काम क्रोध मद लोभ तजहु जनि , भजहु तिनहिं दिन रात"।।
अब कामना यह हो की श्याम सुन्दर मुझे कब मिलेंगे? क्रोध यह हो कि उनके मिलन बिना व्यर्थ में जीवन बीता जा रहा है , लोभ यह हो कि उनसे मेरा निष्काम प्रेम बढ़ता ही जाये। मद यह हो कि हम उनके दास हैं। इस प्रकार सभी कामनाओ को श्याम चरणों में समर्पित करने से और रो रो कर उन्हें पुकारने से हमारा अन्तःकरण शुद्ध हो जायेगा।
..........जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

सबकुछ माँग लिया है , बस तुमको माँग कर........!
उठे नहीं हैं हाथ मेरे , फिर इस दुआ के बाद ..............!!
राधे-राधे।

आज तो है रक्षाबन्धन नन्दनन्दन।
रक्षा करूँ रक्षा करूँ मेरे नन्दनन्दन।।

वजह पूछोगे तो सारी उम्र गुजर जायेगी......!
कहा ना अच्छे लगते हो तो, बस लगते हो.......!!
राधे-राधे।

श्यामा श्याम कहें गुरु भजो आठु यामा।
गुरु कहें आठों याम भजो श्याम श्यामा।।

shyama shyam kahen guru bhajo athu yama.
guru kahen athun yam bhajo shyam shyama.

Shyama Shyam insist on the worship of the Guru while the Guru insist on the worship of Shyam Shyama.
Shyama Shyam Geet - 87
-Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj.
Radha Govind Samiti.

मैंने तो सदा को तुमको अपना बना लिया है, अब तुमको मुझसे अपनापन बढ़ाना है।
I have made you Mine Forever, now it's your turn to Increase your Belongingness and Love for Me.
-----श्री 'कृपालु' गुरुवर (जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज)।

मानिनी ! मान की बान बुरी |
तव छवि मधु – मखियाँ पिय – अँखियाँ, नहिं मानति निगुरी |
निकसन चह असुरी अब तुम बिन, सुधि भूली बँसुरी |
पुनि पुनि कहत बिलखि ‘हा राधे !, कुंजनि कौन दुरी’ |
दुहुँन रुवावति मान – बानि यह, विष की बुझी छुरी |
तुम ‘कृपालु’ दोउ विलग न रहि सक, ज्यों घन ते बिजुरी ||

भावार्थ - ( मानिनी किशोरी जी को मनाती हुई ललिता की उक्ति | )
हे किशोरी जी ! तुम्हारी यह बार – बार रूठ जाने की बात अच्छी नहीं है | प्रियतम की आँखें तुम्हारे रूप की मधुमक्खियाँ बन चुकी हैं | वे अब तुम्हारे बिना किसी भी प्रकार से प्रियतम को चैन नहीं लेने देती | अब प्रियतम के प्राण निकलना ही चाहते हैं एवं उन्हें अब तुम्हारे आगे अपनी प्राणाधिक – प्रिय मुरली का भी ध्यान नहीं रहा | वे बार – बार व्याकुल होकर कहते हैं ‘हा राधे ! तुम कौन से कुंज में छिप गयीं ?’ हे किशोरी जी ! यह विष की बुझी हुई छुरी के समान मान की बान तुम दोनों को रुलाती है, अतएव इसे छोड़ो | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि तुम दोनों एक – दूसरे से पृथक् उसी प्रकार नहीं रह सकते जिस प्रकार बादलों से बिजली |

( प्रेम रस मदिरा मान - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

भगवत्कृपा का सबसे पक्का प्रमाण, भगवज्जन मिलन है, कृपा से लाभ लेना तभी संभव है, जब इस कृपा को बार-बार चिन्तन में लाया जाय। भगवज्जन का यदि दर्शन मात्र प्राप्त हो जाय तो बार-बार चिन्तन कर आनन्द विभोर होना चाहिए । क्योंकि उसके दर्शन को पाने या दिलाने की सामर्थ्य किसी भी साधना में नहीं है । यदि दर्शन के अतिरिक्त और भी सामीप्य मिल जाय फिर तो बात ही क्या है । यदि उस अमूल्य निधि को पाकर भी साधारण भावना या चिन्तन रहा तो महान् कृतघ्नता एवं महान् दुर्भाग्य ही होगा, क्योंकि इससे अधिक हमें क्या पाना शेष है ।
.......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Shri Maharaj Ji reminds us:
If you have attained the human body and a genuine Guru, you have attained the ultimate Grace of God. After that, the only thing that remains is your effort.

सोचिए हम कितने सौभाग्यशाली हैं.........!!!!!
श्री भगवान की महती अनुकम्पा से लाखो योनियों मे से कुछ जीवो को मनुष्य शरीर प्राप्त होता है। इस मनुष्य शरीर मे भी कई हजार लोगो मे कोई एक वेद सम्मत धर्म कर्म मे रुचि रखता है। ऐसे कई हजार लोगो मे कोई एक निश्चित और प्रमाणिक पथ का अनुसरण कर भगवत प्राप्ति की ओर उन्मुख होता है। ऐसे कई हजार जिज्ञासु जीवों मे किसी एक को वास्तविक श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की प्राप्ति होती है और ऐसे कई हजार गुरु कृपा प्राप्त साधकों में से कोई एक रसिक महापुरुष अर्थात गोपी प्रेम प्राप्त महापुरुष का सत्संग प्राप्त करता है। इससे ही ज्ञात होता है कि ब्रजरस के मुर्तिमान स्वरुप 'कृपालु महाप्रभु' का सत्संग कितना दुर्लभतम है। श्री महाराजजी अपनी उदारता, दानशीलता और कृपा के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। उनका ऐसा स्वभाव है कि वे अकारण ही जीवों पर अनवरत कृपा करते रहते हैं।
सोचिऐ ऐसे रसिक शिरोमणि गुरु के हमारे लिए सहज सुलभ हो जाने पर भी हम उनकी आज्ञापालन मे क्यों लापरवाही कर रहे हैं ????

तेरे हाथ से.....मेरे हाथ तक..... वो जो हाथ भर का था फ़ासला............!
उसे नापते.......उसे काटते.......मेरे अनंत जन्म गुज़र गये........!!
राधे-राधे।
अब मैं रोज़ एक नया शेर कहाँ तक लिखूँ तुम्हारे लिये........!
तुम्हारी तो हर रोज़ ही एक नयी बात हुआ करती है ................!!
राधे-राधे।

'आज' नहीं 'कल' कर लेंगे,बस वो कर ले,बस ये कर लें,बस फिर भजन करेंगे.......इस प्रकार अनंत जन्म गँवा दिये लेकिन वह 'आज' और वो 'कल' कभी ना आ सका।
.........श्री महाराजजी।

संसार के अभाव से वैराग्य है अगर, तो वो संसार का वैराग्य नहीं है, जेसे आपके पास धन नहीं है, और धन से वैराग्य है, जेसे आपको बेटा नहीं हे और बेटे से वैराग्य है, तो यह सही वैराग्य नहीं है। यह तो संसार के अभाव से वैराग्य है , संसार से वैराग्य नहीं है। सही वैराग्य तो तब माना जायेगा जब आपके पास सब कुछ हो जैसे माँ भी हो, बाप भी, बेटा भी हो, धन भी हो और आप समझे रहें की यह सब मिथ्या है। यह है सच्चा वैराग्य।
------श्री महाराजजी।

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु के श्रीमुख से:
क्रोध आया कि सर्वनाश हुआ। बदतमीज़ कहने पर 'बदतमीज़' बन गए। आप इतने बड़े मूर्ख हैं कि एक मूर्ख ने 'मूर्ख' कह कर आपको मूर्ख बना दिया।

बलि जाउँ निकुंज विहार की |
नागरि श्री वृषभानु कुँवरि अरु, नागर नंदकुमार की |
धरि जनु रूप अनूप प्रकट भइँ, मूरति छवि श्रृंगार की |
करत केलि भुज मेलि विविध विधि, बरसावत रसधार की |
संग नवेलिन, अति अलबेलिन, हेलिन यूथ अपार की |
पियत ‘कृपालु’ रसिक निशि वासर, प्रेम सुधा रस सार की ||

भावार्थ – एक सखी कहती है – मैं प्रिया – प्रियतम के निकुंज में विविध प्रकार के रास – विहार की बार – बार बलैया लेती हूँ | मैं प्रेम रस की आचार्या वृषभानुनन्दिनी एवं रसिक शिरोमणि नँदनंदन की बार – बार बलैयाँ लेती हूँ | मानो श्रृंगार एवं रूप की मूर्ति ही साक्षात् राधा – कृष्ण का स्वरूप धारण करके प्रेम के अन्तरंग रसों को बरसाने के लिए अवतरित हुयी है | प्रिया – प्रियतम परस्पर गले में हाथ डाले हुए विविध प्रकार की अन्तरंग लीला विहार करते हुए प्रेम रस को मूसलाधार बरसा रहे हैं, मैं उसकी भी बलैयाँ लेती हूँ | प्रिया – प्रियतम के साथ किशोर अवस्था वाली प्रेमरस की रँगीली अनंत गोपियों के झुण्ड की बार – बार बलैया लेती हूँ | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि प्रेमरस के सार – स्वरूप अमृत को रसिक लोग निरंतर ही पिया करते हैं |
( प्रेम रस मदिरा निकुंज – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

वंदनीय है उपनिषत , यामे ज्ञान महान।
श्याम प्रेम बिनु ज्ञान सो , प्राणहीन तनु जान।।८८।।

भावार्थ - उपनिषत् भगवत्स्वरूप हैं। अतः वन्दनीय हैं। उनमें अनंत ज्ञान भरा पड़ा है। किन्तु उनसे श्रीकृष्ण प्रेम नहीं बढ़ता। अतः वह ज्ञान , प्राणहीन शरीर के समान है।
भक्ति शतक (दोहा - 88)
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)

दिन,महीने,सालों का हिसाब नहीं आता है मुझको.....!
हमेशा से हमेशा तक बस तेरा साथ चाहिये.......!!
राधे-राधे।

हरि-गुरु को मन में जितनी बार लाओगे उतनी ही मन की गंदगी शुद्ध होगी,और अगर गंदी बातें लाओगे तो मन और गंदा होगा।
......श्री महाराजजी।

The most important thing is, that even in adverse situations, a devotee should not feel disheartened. He must have full confidence and faith in the gracious kindness of the Divine beloved of his soul, Radha Krishna and Guru. He should use all the available time in remembrance and try to increase love and longing for them.
.........SHRI MAHARAJJI.

हम साधकों को सदा यही समझना चाहिए कि हमसे जो अच्छा काम हो रहा है, वह गुरु एवं भगवान की कृपा से ही हो रहा है क्योंकि हम तो अनादिकाल से मायाबद्ध घोर संसारी, घोर निकृष्ट, गंदे आइडियास(ideas) वाले बिलकुल गंदगी से भरे पड़े हैं। हमसे कोई अच्छा काम हो जाये, भगवान के लिए एक आँसू निकल जाय, महापुरुष के लिए, एक नाम निकल जाये मुख से, अच्छी भावना पैदा हो जाये उसके प्रति हमारी यह सब उनकी ही कृपा से हुआ ऐसा ही मानना चाहिये। अगर वे सिद्धान्त न बताते , हमको अपना प्यार न देते तो हमारी प्रवर्ति ही क्यों होती, कभी यह न सोचो की हमारा कमाल है, अन्यथा अहंकार पैदा होगा , अहंकार आया की दीनता गयी, दीनता गयी तो भक्ति का महल ढह गया। सारे दोष भर जाएंगे एक सेकंड में इसलिए कोई भी भगवत संबंधी कार्य हो जाये तो उसको यही समझना चाहिये कि गुरु कृपा है, उसी से हो रहा है ताकि अहंकार न होने पाये। अगर गुरु हमको न मिला होता, उसने हमको न समझाया होता ,उसने अपना प्यार दुलार न दिया होता, आत्मीयता न दी होती तो हम ईश्वर कि और प्रव्रत्त ही न होतें। अत: उन्ही की कृपा से सब अच्छे कार्य हो रहें है ऐसा सदा मान के चलो।
-----------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

सखी ! पिय, अतिशय सरल सुभाय |
अति कोमल – चित कंत, संत कह, तू कठोर कह हाय !|
पिय निर्दोष रोष जनि करु सखि ! बात और ही आय |
ना जाने वा कुब्जा ने का, जादू – मंत्र चलाय |
मेरी मानि चलहु सब मथुरा, कुब्जहिं भेष बनाय |
तब ‘कृपालु’ हरि उर लगाय अरु, कुब्जा रह खिसियाय ||

भावार्थ – ( एक सखी द्वारा श्यामसुन्दर को कठोर कहने पर दूसरी सखी विरोध करती हुई कहती है - )
अरी सखी ! प्रियतम का स्वभाव तो अत्यन्त सरल है | महात्मा लोग भी कहते हैं कि श्यामसुन्दर का हृदय अत्यन्त कोमल है, फिर तू कठोर क्यों कहती है ? सखि ! श्यामसुन्दर निर्दोष हैं | उन पर क्रोध न कर, इसमें कुछ और ही रहस्य है | मेरी राय में तो उस कुब्जा ने ही मोहिनी – मंत्र पढ़ा दिया है, अतएव मेरी बात मान कर सब लोग कुब्जा का वेश बनाकर मथुरा को प्रयाण कर दो | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि आजकल प्रियतम को कुबरी स्त्री बहुत प्रिय है, अतएव वे सबको हृदय से लगा लेंगे और वास्तविक कुब्जा खिसियानी सी देखती रह जायेगी |

( प्रेम रस मदिरा विरह - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

Sunday, August 10, 2014

मिट जाए गुनाहों का तसव्वुर ही इस दिल से ..........!
अगर हो यकीन कि , वो देख रहा है हमें हर पल हर घड़ी ............!!
राधे-राधे।

हरि-गुरु को मन में जितनी बार लाओगे उतनी ही मन की गंदगी शुद्ध होगी,और अगर गंदी बातें लाओगे तो मन और गंदा होगा।
......श्री महाराजजी।

हरिदासी हैँ मुक्ति सब , सबै जीव हरिदास।
महामूढ़ जो स्वामी तजि , कर दासी की आस।।८७।।

भावार्थ - सभी मुक्तियाँ भगवान् श्रीकृष्ण की दासी हैं और समस्त जीव नित्य दास हैं। जो दास (जीव) अपने स्वामी को छोड़कर दासी (मुक्ति) की आशा करता है। वह महामूर्ख है।
भक्ति शतक (दोहा - 87)
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)
अली ! यह मुरली बुरी बलाय |
भई बावरी गोपिन डोलति, जनु कोउ मूठि चलाय |
कोउ धावति, कोउ दृग झरि लावति, कोउ करति मुख ‘हाय’ !|
लोक – वेद – कुल – कानि – आनि – तजि, गई कोउ बौराय |
आनन धरे हिरन तृन कानन, नेकु न सकेउ चबाय |
शुक, सनकादि, शंभु आदिक जे, तेउ समाधि भुलाय |
बधिर ‘कृपालु’ करत कत अचरज, जो न ठगोरी आय ||

भावार्थ – एक गोपी कहती है कि यह मुरली तो बुरी बला है | इसकी तान सुनकर समस्त ब्रज – गोपियाँ दीवानी – सी बनकर डोलती हैं | जैसे किसी ने इन पर जादू कर दिया हो | कोई गोपी भागती है, कोई घर से न निकल सकने के कारण आँसू बहाती हैं एवं कोई मुरली की तान सुनते ही अपने मुख से हाय ! हाय !! कहती है | कोई तो लोक परलोक का ध्यान छोड़कर वास्तव में ही पागल हो जाती है | वन में मृग अपने मुख में घास रख कर न तो उसे चबा ही सकते हैं और न उगल ही सकते हैं | बड़े – बड़े ज्ञानी शुकदेव, सनकादिक एवं शंकरादिक भी अपनी – अपनी समाधि भूल गये | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि तू बहरा होने के कारण यह आश्चर्य मत कर कि मैं तो मुरली की ठगाई में नहीं आया |
( प्रेम रस मदिरा मुरली - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

Shri Maharaj Ji reminds us:
If you have attained the human body and a genuine Guru, you have attained the ultimate Grace of God. After that, the only thing that remains is your effort.

दिव्य प्रेमास्पद का दिव्य प्रेम ही सर्वोत्कृष्ट तत्व है। प्रेम का तात्पर्य तत्सुख सुखित्वं अर्थात प्रेमास्पद के सुख में ही सुख मानना है।
........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

मानवदेह का सर्वाधिक महत्व सोचकर एक-एक क्षण मूल्यवान मानो, एवं अनावश्यक समय का अपव्यय ना करो।
-------श्री महाराज जी।

श्री महाराजजी के सभी सत्संगीयो के लिए हमारी प्यारी-प्यारी दीदियों(VSK) का सन्देश:
हमारी प्यारी-प्यारी दीदियों की आज्ञा है की सभी सत्संगी कुसंग से जितना हो सके उतना बचे,अधिक से अधिक संकीर्तन करें,आँसू बहाये,श्री महाराजजी ने हर एक जीव को बेहिसाब प्यार दिया है हम सबको पहचान ही श्री महाराजजी से मिली है,आज श्री महाराजजी अदृश्य जरूर हो गए हैं मगर क्या वो अपने बच्चों से उनके लिए दिन रात आँसू बहाने वालों से क्षण भर के लिए भी दूर रह सकते हैं????.....श्री महाराजजी का प्यार हमे अनंत जन्मों तक भी लगातार मिलता रहे तो भी हम उनकी असल महिमा उनकी करुणा उनके वात्सल्य को नहीं समझ पायेंगे। क्योंकि हमारा अंत:करण ही कीचड़ से भी अधिक मलिन है पर हमारे सिर्फ साधना और सिद्धान्त ही काम आना है इसलिए रोज़ नियमित रूप से श्री महाराजजी की स्पीच सुननी है और रूपध्यान करके आँसू बहाकर साधना करनी है ताकि हमारे प्रभु फिर हमें अपने दर्शन का सौभाग्य प्रदान करें।
राधे-राधे।

Today is the festival of Raksha Bandhan.
On this auspicious day, let us ask for Yugal Sarkar to come to us with their arms around each other, in order to protect us from maya.

ATTENTION PLEASE :

Janmashtami will be celebrated on 18th August at Prem Mandir (Vrindavan) in the presence of Didis. A special sadhana shivir will be held on 14th, 15th ,16th and 17th of August at Shyama Shyam Dham, Vrindavan.

Saturday, August 9, 2014

Never listen to your mind. The knowledge you receive from your guru is like revolver. It helps you in disassemble the knots of maya. Your mind will always deny, not to listen to guru's advice because mind is made of maya and guru's advice is spiritual, so how can your mind accepts it. But never be disheartened. Keep listening to guru's advice and after sometime faith will arise and you will get the realization. Knowledge leads to realization and vice versa. keep listening and keep moving forward. You will not get this human body again.
.........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
Photo: Never listen to your mind. The knowledge you receive from your guru is like revolver. It helps you in disassemble the knots of maya. Your mind will always deny, not to listen to guru's advice because mind is made of maya and guru's advice is spiritual, so how can your mind accepts it. But never be disheartened. Keep listening to guru's advice and after sometime faith will arise and you will get the realization. Knowledge leads to realization and vice versa. keep listening and keep moving forward. You will not get this human body again.
.........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

जिस-जिस क्षण गुरु या भगवान् को अपने से दूर मानोगे, उस-उस क्षण मन लापरवाही या मक्कारी करेगा |
..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |
Photo: जिस-जिस क्षण गुरु या भगवान् को अपने से दूर मानोगे, उस-उस क्षण मन लापरवाही या मक्कारी करेगा |
..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज |

Service purifies the heart,increases the feeling of dedication and attracts the personel attention of your Divine Master,whereas Devotion develops your confidence in the attainment of RadhaKrishna.At a certain stage 'DEVOTION' becomes a form of 'SERVICE'.
-------JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
Photo: Service purifies the heart,increases the feeling of dedication and attracts the personel attention of your Divine Master,whereas Devotion develops your confidence in the attainment of RadhaKrishna.At a certain stage 'DEVOTION' becomes a form of 'SERVICE'.
-------JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.

"मनुष्य का शरीर' 'श्रद्धा' और 'महापुरुष की प्राप्ति' इन तीन चीजों का मिलना अत्यंत दुर्लभ है।
'मनुष्य शरीर' और 'महापुरुष' मिल भी जाये तो तीसरी चीज 'श्रद्धा' मिलना अत्यधिक दुर्लभ है। अनादिकाल से इसी में गड़बड़ी हुई है। अनंत संत हमें मिलें लेकिन हमारी उनके प्रति श्रद्धा नहीं हुई इसलिए हमारा लक्ष्य हमें प्राप्त नहीं हुआ।
पहले श्रद्धा, उसके बाद साधु संग, फिर भक्ति करो - ये नियम है।

-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।"
Photo: "मनुष्य का शरीर' 'श्रद्धा' और 'महापुरुष की प्राप्ति' इन तीन चीजों का मिलना अत्यंत दुर्लभ है।
'मनुष्य शरीर' और 'महापुरुष' मिल भी जाये तो तीसरी चीज 'श्रद्धा' मिलना अत्यधिक दुर्लभ है। अनादिकाल से इसी में गड़बड़ी हुई है। अनंत संत हमें मिलें लेकिन हमारी उनके प्रति श्रद्धा नहीं हुई इसलिए हमारा लक्ष्य हमें प्राप्त नहीं हुआ।
पहले श्रद्धा, उसके बाद साधु संग, फिर भक्ति करो - ये नियम है।

-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।"

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के श्रीमुख से नि:सृत अमृत वचन.................

श्री महाराजजी बताते हैं की "श्यामा-श्याम" के लिए एक आँसू बहाने से वे हजार आँसू बहाते हैं। काश! की मेरी इस वाणी पर आप विश्वास कर लेते तो आँसू बहाते न थकते। अरे उसमें हमारा खर्च क्या होता है। उसमें क्या कुछ अकल लगाना है। क्या उसके लिए कोई साधना करनी है? क्या इसमें कोई मेहनत है। क्या यह कोई जप है? तप है? आँसू उनको इतने प्रिय हैं और तुम्हारे पास फ्री हैं। क्यों नहीं फ़िर उनके लिए बहाते हो? निर्भय होकर उनसे कहो कि तुम हमारे होकर भी हमें अबतक क्यों नहीं मिले। तुम बड़े कृपण हो, बड़े निष्ठुर हो, तुमको जरा भी दया नहीं आती क्या? हमारे होकर भी हमें नहीं मिलते हो। इस अधिकार से आँसू बहाओ। हम पतित हैं, अपराधी हैं, तो क्या हुआ। तुम तो 'पतित पावन' हो। फ़िर अभी तक क्यों नहीं मिले? अगर इतने बड़े अधिकार से मन से प्रार्थना करोगे, आँसू बहाओगे, तो वो तुम्हारे एक आँसू पर स्वयं हजार आँसू बहाते हैं।
Photo: जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के श्रीमुख से नि:सृत अमृत वचन.................

श्री महाराजजी बताते हैं की "श्यामा-श्याम" के लिए एक आँसू बहाने से वे हजार आँसू बहाते हैं। काश! की मेरी इस वाणी पर आप विश्वास कर लेते तो आँसू बहाते न थकते। अरे उसमें हमारा खर्च क्या होता है। उसमें क्या कुछ अकल लगाना है। क्या उसके लिए कोई साधना करनी है? क्या इसमें कोई मेहनत है। क्या यह कोई जप है? तप है? आँसू उनको इतने प्रिय हैं और तुम्हारे पास फ्री हैं। क्यों नहीं फ़िर उनके लिए बहाते हो? निर्भय होकर उनसे कहो कि तुम हमारे होकर भी हमें अबतक क्यों नहीं मिले। तुम बड़े कृपण हो, बड़े निष्ठुर हो, तुमको जरा भी दया नहीं आती क्या? हमारे होकर भी हमें नहीं मिलते हो। इस अधिकार से आँसू बहाओ। हम पतित हैं, अपराधी हैं, तो क्या हुआ। तुम तो 'पतित पावन' हो। फ़िर अभी तक क्यों नहीं मिले? अगर इतने बड़े अधिकार से मन से प्रार्थना करोगे, आँसू बहाओगे, तो वो तुम्हारे एक आँसू पर स्वयं हजार आँसू बहाते हैं।

Friday, August 8, 2014

Keep trust with your Guru who has given you spiritual knowledge and practice devotion according to his instructions. Continue with it either sitting in your room at home or anywhere you like. Keep your mind ever absorbed in God and your Guru. Don’t forget them even for a moment.
........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
Photo: Keep trust with your Guru who has given you spiritual knowledge and practice devotion according to his instructions. Continue with it either sitting in your room at home or anywhere you like. Keep your mind ever absorbed in God and your Guru. Don’t forget them even for a moment.
........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

You should continue to practice thinking that God is with you and He is very close to you.
यह अभ्यास करना चाहिए की श्याम सुन्दर मेरे साथ हैं, मेरे पास हैं|
------SHRI MAHARAJ JI.
Photo: You should continue to practice thinking that God is with you and He is very close to you.
यह अभ्यास करना चाहिए की श्याम सुन्दर मेरे साथ हैं, मेरे पास हैं|
------SHRI MAHARAJ JI.

सब साधन जनु देह सम, रूपध्यान जनु प्राण राधे राधे।
खात गीध अरु स्वान जनु ,कामादिक शव मान राधे राधे।।

श्री कृष्ण की प्राप्ति की समस्त साधनाएँ यम,नियम,कर्म,योग,ज्ञान,व्रतादि प्राणहीन शव के समान है, यदि रूपध्यान रहित है।

All spiritual practices for attaining Shri Krishna such as Gyan, Karma, Yoga, Austerities, and Rituals are like a dead body without a soul if they are done without Roop Dhyan -the loving remembrance of Krishna's form.

--------SHRI MAHARAJ JI.
Photo: सब साधन जनु देह सम, रूपध्यान जनु प्राण राधे राधे।
खात गीध अरु स्वान जनु ,कामादिक शव मान राधे राधे।।

श्री कृष्ण की प्राप्ति की समस्त साधनाएँ यम,नियम,कर्म,योग,ज्ञान,व्रतादि प्राणहीन शव के समान है, यदि रूपध्यान रहित है।

All spiritual practices for attaining Shri Krishna such as Gyan, Karma, Yoga, Austerities, and Rituals are like a dead body without a soul if they are done without Roop Dhyan -the loving remembrance of Krishna's form.

--------SHRI MAHARAJ JI.

सबसे बड़ा उपकार यही है कि कोई जीव किसी अन्य जीव को भगवान की तरफ,गुरु की तरफ मोड़ दे,अर्थात उसे अपने गुरु की बाते बताये।उनसे मिलाये।
.......श्री महाराजजी।
Photo: सबसे बड़ा उपकार यही है कि कोई जीव किसी अन्य जीव को भगवान की तरफ,गुरु की तरफ मोड़ दे,अर्थात उसे अपने गुरु की बाते बताये।उनसे मिलाये।
.......श्री महाराजजी।

यह तो संसार है इसमे सब कुछ कहने वाले लोग हैं ,सही भी,गलत भी। फिर गलत कहने वाले तो 99 परसेंट(percent) हैं, सत्वगुणी बुद्धि हुई तो सत्व गुणी बात कहने लगे, रजोगुणी बुद्धि हुई तो हमारा निर्णय रजोगुणी हो गया, तमोगुणी बुद्धि हुई तो एक दम से तमोगुण बात बोलने लगे। इसलिये जब हमारी स्वयं की बुद्धि ही एक सी नहीं रहती तो दूसरों से हम क्यों आशा करते हैं कि वह हमारी बात का समर्थन ही करेगा। ये कभी सतयुग में नहीं हुआ,त्रेतायुग में नहीं हुआ,द्वापर में नहीं हुआ,फ़िर आज क्यों होगा? सारे संतों ने इसलिए लिखा "तुम किसी की और मत देखो न किसी की सुनों बस,अपना काम करो।"
............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
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............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

भगवान् मन बुद्धि से परे हैं ! यदि गुरु कृपा हो जाय तो जीव भगवान् को जान सकता है !
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

We have been turning away from God since time immemorial. As a result, we are clutched by Maya. The cure for this is to turn towards God by doing devotion to a genuine Guru.
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Let's practice feeling deep gratitude towards God for all the Graces we have received from Him. "Thank you God for your infinite compassion" As we progress in our appreciation of all the Graces He bestows upon us, we will automatically enhance love for God in our hearts.
............SHRI MAHARAJ JI.
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............SHRI MAHARAJ JI.