Saturday, November 19, 2011



अरे मन ! इहै सार संसार |
सुर दुर्लभ तनु पाय भजन करु, निशि दिन नंदकुमार |
लगत न दाम छ्दाम याम वसु, सुमिरु श्याम सरकार |
हरि व्यापक संसार एकरस, प्रति परमाणु मझार |
तिनके नाम-रूप-गुण गावत, का घटि जात तिहार |
...
झूठो जप, तप, जोग, याग, व्रत, नेम, धर्म, आचार |
हरि बिनु सुख ‘कृपालु’ नहिं सपनेहुँ, पचि पचि मरिय हजार ||

भावार्थ- अरे मन ! इस असार संसार में यही सार है कि देव दुर्लभ मानव-देह पाकर, निरन्तर श्यामसुन्दर का भजन कर | तू ही सोच ! इसमें तेरी कौड़ी भी तो नहीं खर्च होनी है | एकमात्र उन्हीं का स्मरण कर | श्यामसुन्दर संसार के परमाणु , परमाणु में व्याप्त हैं | उन्हीं के नाम, रूप एवं गुणों का गान कर | तेरा कुछ घट नहीं जायगा | जप, तप, योग, यज्ञ, व्रत, नेम, धर्म, आचार इनसे माया निवृति नहीं हो सकती | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि बिना श्यामसुन्दर की शरण गये स्वप्न में भी सुख नहीं मिल सकता, चाहे करोड़ों साधन करके मर जाओ |

(प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त-माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.

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