Monday, November 28, 2011



महापुरुषों के वचनों को ही मानना है। उनके आचरण पर ध्यान कभी नहीं देना है। यदि वे हमारे साथ खिलवाड़ करें तो उनके सुख के लिए उसमें तन,मन से शामिल हों। लेकिन बुद्धि को उनके चरणों में डाल दो और उनसे दीनातिदीन होकर यही प्रार्थना करो की प्रभु बस इन श्री चरणों में ही सदा-सदा बनाये रखों। वे क्या हैं? हम नहीं जान सकते हैं। ये तो केवल वही जान सकता है जिस पर वो कृपा करके बोध करा देते हैं। केवल इतना ही दृढ़ विश्वास बनाये रखो कि वे ही हमारे सर्वस्व है। सर्वसमर्थ हैं सर्वांतर्यामी हैं और इतना ही नहीं वे तो हमारे बिलकुल अपने हैं और सदा से हम पर अकारण करुण हैं।
------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाराज।

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