Wednesday, June 12, 2013

हमारे श्री महाराजजी कलिमल ग्रसित अधम जीवों को भी सचमुच बरबस ब्रजरस में सराबोर करना चाहते हैं। उनके श्रीमुख से नि:सृत संकीर्तन ब्रज रस ही है, पीने वाला होना चाहिये। श्री महाराजजी की रचनाओं में निहित रस का रसास्वादन तो कोई रसिक ही कर सकता है, फिर भी हम जैसे पतित जीव भी इतना तो महसूस करते ही हैं कि ऐसा रस कभी नहीं मिला।

-------बोलिये रसिक-शिरोमणि भगवान श्री कृपालुजी महाराज की जय.....

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