Wednesday, June 12, 2013

बार बार सोचो , बार बार सोचो, बस वो मिल जायेंगे. हम इन्द्रियो से तो बहुत साधना करतें हैं , जबान से राम राम , श्याम श्याम, राधे राधे . तीर्थो में जाते हैं,मंन्दिरों में जाते है ,पैर से मार्चिंग करते हैं . पूजा करते है हाथ से, आँख से देखते है मूर्ति को, कान से सुनते है भागवत पूराण , गर्ग पूराण , गरुड़ पूराण वगैरह ये इन्द्रियों का वर्क है. भगवान कहते हैं ये सब हम नहीं चाहते. न नोट करते है इसको हम. तुम्हारे मन का अटैचमेंट कितने परसेंट हुआ भगवान मे बस इसको ही प्यार, भक्ति, साधना कहते है .
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज !!

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