Saturday, June 8, 2013

भक्तों की बाहरी क्रियाओं पर कभी ध्यान नहीं देना चाहिये ! बाहर का व्यवहार , चेष्टा , क्रिया देखकर भ्रम हो सकता ! स्वयं को छिपाने के लिये अथवा साधक की मन , बुद्धि की शरणागति की परीक्षा लेने के लिये महापुरुष विपरीत क्रिया एवं चेष्टा भी करते हैं ! अतः महापुरुष की आन्तरिक स्तिथि पर ही ध्यान देना चाहिये !
~~~~जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज~~~~

No comments:

Post a Comment