Sunday, March 30, 2014

जानि जानि अपराध करत नित, नेकहुँ नाहिँ लजायो री किशोरी राधे ।

"गुरु: कृपालुर्मम शरणम, वंदेsहं सद्गुरु चरणम।"

अपना जीवन अपना न मानो, अपने शरण्य का ही मानो। सदा यही सोचो कि उनकी सेवा में ही क्षण-क्षण व्यतीत हो।
------श्री महाराज जी।

"क्षण क्षण हरि गुरु स्मरण में ही व्यतीत करो। पल पल मृत्यु की और बढ़ रहे हो और संसार में बेहोश हो।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।"

My Sadguru (Spiritual Master-JAGADGURUTTAM SHRI KRIPALUJI MAHAPRABHU) is my only refuge. I bow again and again to his lotus feet.I bow to the lotus feet of the Sadguru, which bestow auspiciousness on even the auspicious.I bow to the lotus feet of the Sadguru,which are a refuge for those with no refuge.
I bow to the lotus feet of the Sadguru.He protects the spiritual property of the disciple and graces him with what he does not possess.I bow to the lotus feet of the Sadguru.He graciously liberates souls from the bondage of material ignorance.
I bow to the lotus feet of the Sadguru,through whose grace one’s heart is filled with the divine love of Shri Radha Krishna.We are begging for that divine love, not liberation.I bow again and again to the lotus feet of the Sadguru who bestows that love.
*********RADHEY-RADHEY*********

देख लिया है जग सारा , तेरे जैसा मीत नहीं.........।
तेरे जैसा सबल सहारा , तेरे जैसी प्रीत नहीं...........।।
राधे-राधे।

जैसे किसी वास्तविक महापुरुष का संग करने से अनंत जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। उसी प्रकार हरि गुरु से विमुख व्यक्ति का संग जीव से अनंत पाप करा देता है। इसीलिए हरि - गुरु से विमुख व्यक्तियों का संग नहीं करना चाहिये।
............जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु ।

अनादिकाल से हम संसार की जेल में दण्ड भोग रहे हैं ! इसका एक कारण है कि हमने भगवान् के साथ ' ही ' नहीं लगाया , केवल ' भी ' लगाया ! एक शब्द में इतना बड़ा दण्ड ! भगवान् भागवत में कहते हैं " मैं सब कुछ हूँ तेरा जीव ! क्यों भूल गया तू मुझे ? '' ये माया जो तेरे ऊपर अधिकार किये है केवल मुझे भूलने के कारण ! लेकिन मैं नहीं भूला तुझे ! मैं तेरे हृदय में बैठ कर तेरे एक एक आइडियाज ( IDEAS ) को नोट करता हूँ , चुपचाप , तुझे
डिस्टर्ब ( DISTURB ) नहीं करता ! इसलिये जीव ! तू निरंतर मेरा स्मरण करते हुये मेरे नाम के साथ ' ही ' लगा ' भी ' नहीं। जिस दिन तू ' ही ' लगा देगा उस दिन भगवत प्राप्ति तेरे लिये करतलगत है।

.......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

मान ले उनको तू सिर्फ़ अपना.......सीख़ ले याद में बस तड़पना.........वे लगा लेंगे सीने से तुझको.......वे लगा लेंगे सीने से तुझको.........वे 'कृपालु' हैं तंगदिल नहीं हैं...........!!

THE MANY COLORS OF 'PREM MANDIR' IN VRINDAVAN DHAM.

"The absolute essence of all the Divine philosophies is to attach yourself in loving remembrance of your soul beloved krishna with a growing desire to serve Him more and more."
............SHRI MAHARAJJI.

प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है श्रीकृष्ण भक्ति। श्रीकृष्ण को धारण करने के लिये 'श्रीकृष्ण भक्ति' की रस्सी पकड़ो। वह भक्ति की रस्सी श्रीकृष्ण के हाथ में है। उसी रस्सी को पकड़ लो , वे खींच लेंगे। ऐसे ही जम्प करके ऊपर जाने की चेष्टा न करो। गिरोगे , सिर फट जायेगा।
..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

आँसू बहाने से अन्तःकरण शुद्ध होगा, याद कर लो सब लोग, रट लो ये कृपालु का वाक्य। भोले बालक बनकर रोकर पुकारो, राम दौड़े आयेंगे। सब ज्ञान फेंक दो, कूड़ा-कबाड़ा जो इकट्ठा किया है। अपने को अकिंचन, निर्बल, असहाय, दींन हीन, पापात्मा महसूस करो, भीतर से, तब आँसू की धार चलेगी, तब अन्तःकरण शुद्ध होगा, तब गुरु कृपा करेगा। गुरु की कृपा से राम के दर्शन होंगे, राम का प्यार मिलेगा और सदा के लिये आनन्दमय हो जाओगे।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

प्रश्न: परमार्थ के पथ पर चलने वाले साधक को क्या अपने भविष्य की चिंता करनी चाहिए ?
उत्तर: श्री महाराजजी द्वारा :- नहीं। क्योंकि जो कुछ प्रारब्ध में होगा वही उसे प्राप्त होगा । परमार्थ के पथ पर चलने वाले को चिंता किस बात की ,अगर कोई कहे की भविष्य की चिंता नहीं करेंगे तो मर जाएंगे ,यह कैसे हो सकता है ,जब भगवान के वो शरणागत है और शरणागत का योगक्षेम स्वयं भगवान वहन करते हैं।

सुप्रीम पावर पूर्णतम पुरुषोतम ब्रह्म श्रीकृष्ण ही वास्तविक नित्य अनन्त मात्रा के प्रकाश हैं शेष सब अंधकार का स्वरूप हैं। जड़ स्वरूप हो चाहे चेतन हो चाहे कुछ भी हो।
.............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

प्रथम नमन गुरुवर पुनि गिरिधर, जोई श्री गुरुवर सोई श्री गिरिधर।
हरि गुरु कृपा सदा सब ही पर, अंत:करण पात्र पावन कर।
करहु 'कृपालु' कृपा मोहूँ पर, तन मन धन अर्पन चरनन पर।।

भगवान के समस्त नाम, समस्त गुण, समस्त लीला, समस्त धाम एवं उनके समस्त भक्त परस्पर एक हैं। एक के प्रति दुर्भाव करना सभी के प्रति दुर्भाव करना है। समस्त महापुरुष एवं भगवान के समस्त अवतार भी परस्पर अभिन्न हैं। ऐसा तत्त्वज्ञान सदा के लिए हृदय में अंकित कर लेना चाहिए।
-------श्री महाराज जी।

वे कृपा करके नहीं थकते,और कृपा न करे ऐसा भी नहीं हो सकता,इससे बढ़कर और वो कर भी क्या सकते हैं?
अत: पात्र तो हमें ही बनाना पड़ेगा।

.......श्री महाराज जी।

हे करुणासिन्धु, दीनबंधु, मेरे बलबंधु तुम अपनी अकारण करुणा का स्वरूप प्रकट करते हुए मुझे अपना लो। मैं तो अनन्त जन्मों का पापी हूँ किन्तु तुम तो पतितपावन हो। यही सोचकर तुम्हारे द्वार पर आ गया।
-------श्री महाराज जी।
Speak less, speak softly and speak sweetly.
-----SHRI MAHARAJ JI.

Saturday, March 29, 2014

अब तो कृपा करो श्री राधे!

संसार मिलने के पहले ,मिलने पर और मिलने के बाद ,तीनों अवस्थाओं में दुःख ही दु:ख है। ये बात अगर बुद्धि में बैठ जाये तब भगवान की भूख बढ़ेगी।
--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

Attach the mind to Shri Krishna by loving Him in every possible way. As Master, Friend, Child and Beloved, Krishna fulfills the mind’s desire to form different relationships. Let the mischievous mind become a bee for the lotus feet of the all-attractive Krishna and rest there, inebriated with the ever-new nectar, which flows in abundance.
------SHRI MAHARAJ JI.

अगर आपको पुरा विश्वास है कि भगवान सब के ह्रदय में बैठा है और सर्वान्तर्यामी है और उसको पता है आपको क्या चाहिये तो आप उनसे कुछ मांगोगे ही नहीं।
If you truely believe that God is with in heart of every soul and is all knowing, and he knows what you need ,then you would not ask him for anything.
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

God is available only to those who sacrifice some of their time and make the effort to know Him. Lord Krishna is so merciful that He promises to run sixty steps to meet the devotee who takes just one step towards Him. But you have to take that first step yourself. No one can take it on your behalf, nor can you pay another to take it for you.
.......SHRI MAHARAJ JI.

Thursday, March 27, 2014

One who serves the Guru with dedication is a true seeker. Since he or she has become the recipient of divine grace, he or she is dear to the Guru. Bearing ill-will towards such a seeker is a serious offense.
------SHRI MAHARAJ JI.
सच्चा गुरु कभी संसारी वस्तु नहीं दिया करता। वास्तविक गुरु कभी सिद्धियों का चमत्कार नहीं दिखाते। वे कभी मिथ्या आशीर्वाद व श्राप भी नहीं देते।
-----श्री महाराजजी।

"Through selfless devotion anyone can find Krishna. There is no question of religion, culture or nationality because "devotion to Krishna" is not a religion. It is the unity of your heart and mind with the supreme power of Divine Love."
........SHRI MAHARAJJI.

बहुत सावधान होकर के साधना की रक्षा करना है। ये सब लोग सोचते रहो।
डेली सबेरे उठकर दो मिनट ये सोचो -- आज हमको सावधान रहना है।
फिर रात को सोते समय सोचो -- आज हमने कहाँ - कहाँ गड़बड़ किया।

इस प्रकार अभ्यास करो तो १० दिन २० दिन में ही अपने को तुम बहुत आगे पाओगे कि आज हमारे बेटे ने ऐसा कहा लेकिन मैं चुप रही। जीत गयी। आज क्रोध नहीं आया। गाली - गलौच और जलना दुःख में, क्रोध में - ये सब नहीं हुआ।
फिर अगले दिन - आज हो गया एक जगह गड़बड़। अब कल नहीं होने पायगा।
ऐसे अभ्यास किया जाता है। दिन भर रात भर लापरवाह रहे, जो होना है होने दो, तो फिर माया है ही है वो तो नचा डालेगी तुमको, बर्बाद कर देगी। इस मन से बड़े - बड़े योगी लोग हार गये। लापरवाही किया कि गये।
बहुत सँभल कर चलना है, जितने क्षण मानवदेह के मिले हैं उसको अमुल्य समझना है पता नहीं कल का दिन मिले न मिले और हम राग द्वेष में समाप्त कर दें।
......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

वे सदैव हमारी रक्षा करते रहे हैं, वर्तमान में भी कर रहे हैं। हम नहीं जानते हम किस खतरे में पड़ जाते अब तक?
-----श्री महाराज जी।

Wednesday, March 26, 2014

The absolute essence of all the Divine philosophies is to attach yourself in loving remembrance of your soul beloved krishna with a growing desire to serve Him more and more.
............SHRI MAHARAJJI.
जैसे किसी वास्तविक महापुरुष का संग करने से अनंत जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। उसी प्रकार हरि गुरु से विमुख व्यक्ति का संग जीव से अनंत पाप करा देता है। इसीलिए हरि - गुरु से विमुख व्यक्तियों का संग नहीं करना चाहिये।
......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु ।

You should continue to practice thinking that God is with you and He is very close to you.
यह अभ्यास करना चाहिए की श्याम सुन्दर मेरे साथ हैं, मेरे पास हैं|

------SHRI MAHARAJ JI.
मौत को हर समय याद रखो !पता नहीं अगला क्षण मिले न मिले ! कौन जनता है कल का दिन मिले न मिले ?

Always remember your impending time of death. No one knows if he will live to see the next moment or not. Who knows if he will live to see tomorrow?


.......SHRI MAHARAJ JI.

तुम अपने स्वार्थ पर विचार करो। परोपकार की बात ना सोचो। और विचार त्यागकर , श्रीकृष्ण से प्यार करो।
`````जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज`````

Tuesday, March 25, 2014

हमारी राधे दीनन की रखवार!
Hamaari radhe denan ki rakhawaar!

My Radha Rani is the saviour of the destitute.
.....SHRI MAHARAJ JI.

A devotee prays, “May there always be sorrow and suffering in my life, so that I may never forget God!” “Cursed be the happiness that makes me forget my Lord; blessed be the sorrows that make me remember Him.” Strive to become a true lover of God by not objecting to His will and by embracing His mysterious ways.
----JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

अपनापन रखना मेरे घनश्याम।
Apanapan rakhna mere ghanshyam.

O my Shyam! Please consider me as your own.
......SHRI MAHARAJ JI.

विश्वास बढ़ाओं।
तदर्थ बार - बार चिन्तन आवश्यक है। चिन्तन गुरु एवं इष्टदेव की कृपा का करना है। कृपा केवल दर्शन मात्र की ही पर्याप्त है। एक क्षण भी कृपा के विपरीत न सोचो।
कभी भी अकेले न रहो। सदा उन्हें अपने साथ मानो। रोम - रोम में प्रियतम के स्पर्श का चिन्तन करो।
करके देखो।
………जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

Monday, March 24, 2014

जीवन वही है जो हरि-गुरु सेवा में ही लगा रहे।
-----श्री महाराजजी।
हरि गुरु की सेवा से, हरि गुरु के निरंतर स्मरण से हमारा अन्तः करण शुद्ध होगा ।
ये प्रतिज्ञा कर लो सब लोग की जब आपस मे मिलो तो केवल भगवद् चर्चा करो और यदि दूसरा न करे तो वहाँ से तुरंत चले जाओ, हट जाओ । इस प्रकार कुसंग से बचो । जो कमाइए उसको लॉक करके रखिए, लापरवाही मत कीजिये ।
.......जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

Time is one of our most precious resources. It is flying, and this golden opportunity is slipping out of our hands. Use every moment wisely.
........SHRI MAHARAJJI.

भगवननाम ही वास्तविक ख़जाना है।
......श्री महाराजजी।

'' अनादिकाल से हम संसार की जेल में दण्ड भोग रहे हैं ! इसका एक कारण है कि हमने भगवान् के साथ ' ही ' नहीं लगाया , केवल ' भी ' लगाया ! एक शब्द में इतना बड़ा दण्ड ! भगवान् भागवत में कहते हैं " मैं सब कुछ हूँ तेरा जीव ! क्यों भूल गया तू मुझे ? '' ये माया जो तेरे ऊपर अधिकार किये है केवल मुझे भूलने के कारण ! लेकिन मैं नहीं भूला तुझे ! मैं तेरे हृदय में बैठ कर तेरे एक एक आइडियाज ( IDEAS ) को नोट करता हूँ , चुपचाप , तुझे
डिस्टर्ब ( DISTURB ) नहीं करता ! इसलिये जीव ! तू निरंतर मेरा स्मरण करते हुये मेरे नाम के साथ ' ही ' लगा ' भी ' नहीं। जिस दिन तू ' ही ' लगा देगा उस दिन भगवत प्राप्ति तेरे लिये करतलगत है।''

.......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Saturday, March 22, 2014

Just put aside few minutes every day to do 'Sadhana'. You have nothing to loose but to gain. You do not have to make any special accommodation. Where ever you remember God becomes pure ambiance. Just like the sun evaporates dirty water and turn it into rain drops. God will purify you from all your sins and make you his own forever.
मान ले उनको तू सिर्फ़ अपना.......सीख़ ले याद में बस तड़पना.........वे लगा लेंगे सीने से तुझको.......वे लगा लेंगे सीने से तुझको.........वे 'कृपालु' हैं तंगदिल नहीं हैं...........!!

''With me is Infinite power. Before me is endless possibilities. Around me is boundless opportunity why should i fear?''


Popularity and Prestige- Hurdles in Devotion.....


The goal of popularity and prestige is also extreme kusang. Often what happens is that a devotee, upon gaining some knowledge and experience, goes around bragging amongst people and gradually assumes a form of self-pride and self-superiority, and as a result of that he loses the greatest treasure, 'humility' as a devotee. In addition to that, such casual behavior only strengthens and further deepens the desire for greatness and glory.

--------- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj.

Friday, March 21, 2014

श्याम समुझ से श्याम को,समुझ सके सब कोय।
श्याम समुझ तब मिलई जब,समुझ समर्पित होय।।

भावार्थ:- श्यामसुंदर की बुद्धि से ही वे समझ आयेंगे ऐसा समझ कर अपनी समझ (बुद्धि) को श्यामसुंदर के चरणों में समर्पित कर देना चाहिये।
-----श्री महाराजजी।