Sunday, April 3, 2016

यान्ति देवव्रता देवन्पितृत्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोअपिमाम्।।

( गीता 9-25 )
भगवान् नें अर्जुन से कहा - भई ! ये तो कुछ अकल लगाने की बात है नहीं । तुम देवताओं से प्यार करो , देवताओं का लोक मिल जायेगा, भूतों से प्यार करो भूत लोक मिल जायेगा और मुझसे प्यार करोगे तो मैं मिल जाऊँगा । तुम्हें क्या चाहिये ? तुम सोच लो और जो कुछ चाहिये उसी एरिया वाले से प्यार कर लो । लेकिन प्यार करना पड़ेगा तुमको । कोई भी व्यक्ति बिना प्यार के जीवित नहीं रह सकता । अब तुम्हे क्या चाहिये ? अपने एम को समझ लो । उसी हिसाब से प्यार कर लो और प्यार करना सबको आता है । सिखाना भी नहीं है । क्या शास्त्र वेद बतायेगा ? क्या शास्त्र में लिखा है ? मैं तो चैलेंज करता हूँ , ऐसी कोई बात नहीं शास्त्र वेद में , जो आपको मालुम न हों कम से कम भगवान् के विषय में । देवताओं के विषय में बाते बड़ी- बड़ी हैं । उसमें तो बड़े कायदे कानून हैं लेकिन भगवान् के बारे में , महापुरुष के बारे में तो कुछ अकल लगाने की आवश्यकता ही नहीं । भोले बालक बन कर के सरेंडर करना है , शरणागत होना है । बस प्यार करना है । कोई कायदा क़ानून नहीं है।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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