Wednesday, April 27, 2016
सर्वप्रथम
यह विचार करना है कि जीव का रोग क्या है ? इसका सीधा सा उत्तर है कि जीव
को माया की दासता का रोग है माया के अधीन होने के कारण ही भगवान् से विमुख
है। भगवान् से विमुख होने के कारण अपने शुद्ध स्वाभाविक स्वरूप को भूल गया
है ( मैं सेवक रघुपति पति मोरे ) अपने शुद्ध स्वरूप को भूल जाने के कारण
स्वयं को शरीर मानने लगा है। स्वयं को शरीरादि मानने के कारण ही सांसारिक
मायिक पदार्थों में ही आनन्द प्राप्ति की निरन्तर साधना कर रहा है। बस यही
रोग एवं उनके परिणाम हैं। इस रोग के बड़े - बड़े उपद्रव स्वयं हो गये। यथा
काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष पाखण्ड आदि । पुनः कर्मबन्धन
आदि अनन्त उपद्रव उत्पन्न होते चले गये।
~~~~~~~जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज~~~~~~~~
~~~~~~~जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज~~~~~~~~
Thursday, April 7, 2016
जिज्ञासु जन !
मानव देह दुर्लभ है किन्तु नश्वर है किसी भी क्षण छिन सकता है । अतएव उधार न करो । तत्काल मन से हरि गुरु का स्मरण प्रारंभ कर दो ।
शरीर से संसारी कार्य करो एवं मन का अनुराग हरि गुरु में हो ।
मन हरि में तन जगत में , कर्म योग ये हि जान।
तन हरि में मन जगत में , यह महान अज्ञान ।।
मानव देह दुर्लभ है किन्तु नश्वर है किसी भी क्षण छिन सकता है । अतएव उधार न करो । तत्काल मन से हरि गुरु का स्मरण प्रारंभ कर दो ।
शरीर से संसारी कार्य करो एवं मन का अनुराग हरि गुरु में हो ।
मन हरि में तन जगत में , कर्म योग ये हि जान।
तन हरि में मन जगत में , यह महान अज्ञान ।।
----- सुश्री श्रीधरी दीदी (प्रचारिका), जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
गुरु वन्दना......!!!
हे हमारे जीवन धन! हमारे प्राण! हमारे पथ प्रदर्शक ! हमारे इस विश्वास को दृढ़ कर दो कि तुम सदा सर्वत्र हमारे साथ हो,हमारे साथ ही चल रहे हो,खा रहे हो,बोल रहे हो,हँस रहे हो,खेल रहे हो,हर क्रिया में तुम्हारी ही उपस्थिती का अनुभव हो। तुम्हारा नाम लेकर तुम्हें पुकारें,और तुम सामने आ जाओ। नाम में नामी विध्यमान है इस सिद्धान्त को हमारे मस्तिक्ष में बारंबार भरने वाले! अब इसे क्रियात्मक रूप में हमें अनुभव करवा दो।
हे दयानिधान! नाम में प्रकट होकर कृपा करने वाले कृपालु!
तुमको कोटि-कोटी प्रणाम।
हे हमारे जीवन धन! हमारे प्राण! हमारे पथ प्रदर्शक ! हमारे इस विश्वास को दृढ़ कर दो कि तुम सदा सर्वत्र हमारे साथ हो,हमारे साथ ही चल रहे हो,खा रहे हो,बोल रहे हो,हँस रहे हो,खेल रहे हो,हर क्रिया में तुम्हारी ही उपस्थिती का अनुभव हो। तुम्हारा नाम लेकर तुम्हें पुकारें,और तुम सामने आ जाओ। नाम में नामी विध्यमान है इस सिद्धान्त को हमारे मस्तिक्ष में बारंबार भरने वाले! अब इसे क्रियात्मक रूप में हमें अनुभव करवा दो।
हे दयानिधान! नाम में प्रकट होकर कृपा करने वाले कृपालु!
तुमको कोटि-कोटी प्रणाम।
-------सुश्री श्रीधरी दीदी (जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका)।
God
is merciful. He knows all the souls have various levels of
consciousness and that they are indulging in the material world. He
reveals such a path that can help people of all natures; those who are
in material consciousness, those who are in yogic or psychic
consciousness and those who are in God consciousness. All of these can
be helped if they follow the right path. God has revealed His knowledge
in the Vedas, the Gita and Bhagwatam, telling how to reach Him. Wherever
you are whatever the state of your mind is, it doesn't matter. If you
trust in our scriptures, they shall lead you to Him.
.......JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
.......JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
Sunday, April 3, 2016
यान्ति देवव्रता देवन्पितृत्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोअपिमाम्।।
( गीता 9-25 )
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोअपिमाम्।।
( गीता 9-25 )
भगवान् नें अर्जुन से कहा - भई ! ये तो कुछ अकल लगाने की बात है नहीं ।
तुम देवताओं से प्यार करो , देवताओं का लोक मिल जायेगा, भूतों से प्यार करो
भूत लोक मिल जायेगा और मुझसे प्यार करोगे तो मैं मिल जाऊँगा । तुम्हें
क्या चाहिये ? तुम सोच लो और जो कुछ चाहिये उसी एरिया वाले से प्यार कर लो ।
लेकिन प्यार करना पड़ेगा तुमको । कोई भी व्यक्ति बिना प्यार के जीवित नहीं
रह सकता । अब तुम्हे क्या चाहिये ? अपने एम को समझ लो । उसी हिसाब से प्यार
कर लो और प्यार करना सबको आता है । सिखाना भी नहीं है । क्या शास्त्र वेद
बतायेगा ? क्या शास्त्र में लिखा है ? मैं तो चैलेंज करता हूँ , ऐसी कोई
बात नहीं शास्त्र वेद में , जो आपको मालुम न हों कम से कम भगवान् के विषय
में । देवताओं के विषय में बाते बड़ी- बड़ी हैं । उसमें तो बड़े कायदे कानून
हैं लेकिन भगवान् के बारे में , महापुरुष के बारे में तो कुछ अकल लगाने की
आवश्यकता ही नहीं । भोले बालक बन कर के सरेंडर करना है , शरणागत होना है ।
बस प्यार करना है । कोई कायदा क़ानून नहीं है।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
वेद कहता है -
उद्यानं ते पुरुष नावयानम् ।
अरे मनुष्य ! सोच तुझसे आगे कुछ भी नहीं है , देवता भी तेरे नीचे हैं, ये भी तरसते हैं मानव देह को । तू ऐसे देह को पाकर खो रहा है । क्या कर रहा है ? जी जरा आजकल मैं सर्विस खोज रहा हूँ । जरा आजकल मैं एक लाख के चक्कर में हूँ , जरा आजकल , लड़का जरा बड़ा हो जाय , बीबी जरा ऐसी हो जाय, बेटा जरा । क्या सोच रहा है ? इसके लिये तू आया है ? अनन्त बाप, अनन्त बेटे, अनन्त पति , अनन्त बीबी , अनन्त वैभव अनन्त जन्मों में बना चुका , पा चुका, भोग चुका , खो चुका अब भी पेट नहीं भरा ? फिर दस बीस करोड़, दस बीस अरब , दस बीस बीबी , दस बीस बच्चे के चक्कर में पड़ा है । सोच । उठ ऊपर को ' उद्यानम् ' । अगर तू चूक गया तो ऐ मनुष्य ! तुझसे आगे कोई सीट नहीं है ये अन्तिम सीट पर तू खड़ा है । अब जब यहाँ से नीचे गिरेगा तो -
उद्यानं ते पुरुष नावयानम् ।
अरे मनुष्य ! सोच तुझसे आगे कुछ भी नहीं है , देवता भी तेरे नीचे हैं, ये भी तरसते हैं मानव देह को । तू ऐसे देह को पाकर खो रहा है । क्या कर रहा है ? जी जरा आजकल मैं सर्विस खोज रहा हूँ । जरा आजकल मैं एक लाख के चक्कर में हूँ , जरा आजकल , लड़का जरा बड़ा हो जाय , बीबी जरा ऐसी हो जाय, बेटा जरा । क्या सोच रहा है ? इसके लिये तू आया है ? अनन्त बाप, अनन्त बेटे, अनन्त पति , अनन्त बीबी , अनन्त वैभव अनन्त जन्मों में बना चुका , पा चुका, भोग चुका , खो चुका अब भी पेट नहीं भरा ? फिर दस बीस करोड़, दस बीस अरब , दस बीस बीबी , दस बीस बच्चे के चक्कर में पड़ा है । सोच । उठ ऊपर को ' उद्यानम् ' । अगर तू चूक गया तो ऐ मनुष्य ! तुझसे आगे कोई सीट नहीं है ये अन्तिम सीट पर तू खड़ा है । अब जब यहाँ से नीचे गिरेगा तो -
आकर चारि लक्ष चौरासी ।योनि भ्रमत यह जिव अविनाशी।
कबहुँक करि करुणा नर देही ।
करुणा करके मानव देह , इस बार जो मिला , यह हर बार नहीं मिला करेगा । हजार , लाख , करोड़ साल बाद भी नहीं मिला करेगा । ये तो ' कबहुँक करि करुणा नर देही ।'
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
कबहुँक करि करुणा नर देही ।
करुणा करके मानव देह , इस बार जो मिला , यह हर बार नहीं मिला करेगा । हजार , लाख , करोड़ साल बाद भी नहीं मिला करेगा । ये तो ' कबहुँक करि करुणा नर देही ।'
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
A
genuine saint never indulges in the performance of miracles or
revelation of supernatural power. Most people fall into the trap of
so-called saint who perform miracles of a material nature. Even though
these miracles lead to Hell or some lower place, they are readily
accepted by ignorant material being.
......SHRI MAHARAJJI.
......SHRI MAHARAJJI.
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