Wednesday, April 22, 2020

श्री कृपालुमहाप्रभु चरणानुरागी भक्तवृन्द !
सप्रेम राधे राधे ।
इस संसार में सद्गुरु से बढ़कर जीव का हितैषी और कोई नहीं हो सकता। हितैषी का अर्थ है पापकर्म से हमें बचाकर, भगवान में लगाकर जो हमारा परम मंगल करने में समर्थ हो। और ऐसा करने में केवल सद्गुरु ही समर्थ हैं। उनका अवतरण परोपकार के लिए ही होता है।
जिस प्रकार नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती दूसरों को पिलाती है , वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाते दूसरों को प्रदान करते हैं । इसी प्रकार संतों का सहज स्वभाव होता है केवल जीवों पर अहैतुकी कृपा करना। वे भोजपत्र के समान अपना सर्वस्व हम जैसे अधम जीवों के कल्याण के लिए समर्पित कर देते हैं -
भोज पत्र सम संत गोविंद राधे ।
पर हित निज सर्वस्व लुटा दे।।
( राधा गोविंद गीत )
उनका हृदय नवनीत से भी अधिक कोमल होता है क्योंकि मक्खन तो स्वयं को ताप मिलने पर पिघलता है लेकिन संत हृदय तो दूसरों का ताप देखकर ही द्रवीभूत हो जाता है। उनसे कृपा किये बिना रहा ही नहीं जाता।
#स्वनामधन्य_संत_शिरोमणि_श्री_कृपालु_महाप्रभु ने सोते-जागते, खाते-पीते , चलते-फिरते सदैव अपने रोम-रोम से हम जैसे कलिमलग्रसित पतित जीवों पर कृपा ही कृपा लुटाई है।
धन्य है कलिपावनावतार श्री कृपालु महाप्रभु की कृपा का अद्भुत विलास । ऐसे कृपावतार की सदा जय हो ! जय हो !
सद्गुरु शिरोमणि श्री कृपालु महाप्रभु के पतित-पावन चरण-कमलों में कोटि-कोटि नमन, कोटि-कोटि नमन !
हम सभी की प्रीति श्री गुरु चरणों में सदा बढ़ती जाये इसी मंगल कामना के साथ-

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