Saturday, August 12, 2017

कोई हो पापात्मा हो, पुण्यात्मा हो,स्त्री हो, पुरुष हो, नपुंसक हो,जो भी मुझसे प्यार कर ले। कुछ भी मान के प्यार कर ले। फिर कोई कर्म करे,उसको पाप पुण्य छू नहीं सकता।और अर्जुन!अगर कोई ये सोचे कि मैंने तो शास्त्र-वेद पढ़ा नहीं, नहीं तो मैं जल्दी भगवत्प्राप्ति कर लेता।
अरे—नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।

मैं वेदाध्ययन वगैरह से,पण्डिताई से नहीं मिलता। उससे तो और दूर हो जाता हूँ।क्योंकि उसमें अहंकार हो जाता है।
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन।
(११-५३, ११-५४)

केवल भक्ति से मिलता हूँ।
------- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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