Thursday, August 3, 2017

यदहरेव विरजेत् तदहरेव प्रव्रजेत्।
( याज्ञवलक्योपनिषद-१ )
वेद कहता है तुम्हारे मन का लगाव भगवान् में हो गया तो फिर तुम्हारी कोई ड्यूटी नहीं है संसार के रिश्तेदारों के प्रति। जाओ,भगवान् की भक्ति करो,तुम्हारे संसार को उसका संस्कार संभालेगा। सब जीव अपने-अपने संस्कार लेकर आते हैं। ये अहंकार व्यर्थ का है कि हम न हों तो हमारे बेटे को कौन सँभालेगा ? ये सब बकवास है। कितने बाप मर गये,बेटे बड़े-बड़े आदमी हो गये,प्राइम मिनिस्टर तक हो गये। किसी के मरने-जीने,होने न होने से फरक नहीं पड़ता।
तो इसलिये हमें ये फिकर नहीं करना है कि हम नहीं होंगे तो उसका क्या होगा ? उसका क्या होगा ? सबके भीतर भगवान् बैठे हैं,उसके संस्कार हैं। दो चीजें हैं। संस्कार के अनुसार वो अपना संसारी सामान पायेगा,भगवान् की ओर चलेगा,सब संस्कार के अनुसार होगा। प्रवृत्ति हमारी जो होती है वो पूर्व जन्म के संस्कार के अनुसार होती है।फिर उसको हम बढ़ावें या घटावें,ये हमारे ऊपर है,क्रियमाण कर्म पर निर्भर है।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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