Monday, April 10, 2017

मिलत नहिं नर तनु बारम्बार |
कबहुँक करि करुणा करुणाकर, दे नृदेह संसार |
उलटो टाँगि बाँधि मुख गर्भहिं, समुझायेहु जग सार |
दीन ज्ञान जब कीन प्रतिज्ञा, भजिहौं नंदकुमार |
भूलि गयो सो दशा भई पुनि, ज्यों रहि गर्भ मझार |
यह ‘कृपालु’ नर तनु सुरदुर्लभ, सुमिरु श्याम सरकार ||

भावार्थ – यह मनुष्य का शरीर बार – बार नहीं मिलता | दयामय भगवान् चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात् दया करके कभी मानव देह प्रदान करते हैं | मानव देह देने के पूर्व ही संसार के वास्तविक स्वरूप का परिचय कराने के लिए गर्भ में उल्टा टाँग कर मुख तक बाँध देते हैं | जब गर्भ में बालक के लिए कष्ट असह्य हो जाता है तब उसे ज्ञान देते हैं और वह प्रतिज्ञा करता है कि मुझे गर्भ से बाहर निकाल दीजिये, मैं केवल आपका ही भजन करूँगा | जन्म के पश्चात् जो श्यामसुन्दर को भूल जाता है, उसकी वर्तमान जीवन में भी गर्भस्थ अवस्था के समान ही दयनीय दशा हो जाती है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि यह मानव देह देवताओं के लिये भी दुर्लभ है, इसीलिये सावधान हो कर श्यामसुन्दर का स्मरण करो |
( प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

No comments:

Post a Comment