Tuesday, April 25, 2017

प्रश्न: महाराजजी! कभी कभी ऐसा होता है न एक बार मैंने ऐसे ही suit डाला हुआ था तो कोई आई और कहती है - मालकिन किधर है? तो मुझे लगा- मैं नौकरानी हूँ क्या?
उत्तर: श्री महाराजजी बोले! नौकर तो हो ही हो। भगवान के नौकर हो माया के नौकर हो। दो में से एक का नौकर बनना पड़ेगा सबको। यही तो बात है न अहंकार की। उसने जब कहा मालकिन कहाँ है तो धक्का लगा तुमको। इसका मतलब तुम अपने को मालकिन समझती हो। काहे की मालकिन हो? दो कौड़ी की तो हो। किस बात की मालकिन हो बताओ जरा? अरे! काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य ईर्ष्या द्वेष सबकी तो मरीज़ हो,गुलाम हो। मालकिन किस बात की हो? मालिक तो एक भगवान है, महापुरुष है बस। तुम कहाँ मालकिन बनोगी? तुम तो इच्छाओं की गुलाम हो,ख़्वाहिशों की दासी हो। तो क्या गलत बोला उसने?
यह बीमारी निकाल देगा जब मनुष्य तभी वह normal होगा। वरना चाहे करोड़पति हो जाय,वह आगे ही बढ्ने की सोचेगा और हमेशा tension में रहेगा। कभी शांति नहीं मिल सकती। यह बीमारी मिटा दो। कोई किसी को कभी अच्छा नहीं कह सकता न मान सकता है चाहे वह जिस भी तरीके से रहे। तो फिर क्यों गुलामी करें हम दुनिया की अनावश्यक? हमको लोग अच्छा कहें- इस चक्कर में न पड़के अच्छा बनने के लिए चेष्टा करें।

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