Sunday, December 6, 2015

अगर कोई सोचता है- मैं अभागा हूँ। यह भगवान अथवा गुरु के प्रति सबसे बड़ी अकृतज्ञता है। कोई समर्थ गुरु मिल गया तो। भगवान की कृपा की तो यह अंतिम सीमा हो गयी।
------श्री महाराजजी।

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