Friday, July 26, 2013

गुरुपूर्णिमा पर्व गुरु सेवा के लिए प्रेरित करता है । वस्तुतः गुरु पूर्णिमा का ताप्तर्य ही है गुरु चरणों में सर्व समर्पण करके भी सन्तुष्ट न होना क्योंकि सद्गुरु ऋण से कोई भी, कभी भी उऋण नहीं हो सकता ।

किसी को कभी किसी जन्म में श्रोत्रिय ब्रहमनिष्ठ महापुरुष गुरु मिल जाये और वह श्रद्धालु विरक्त जिज्ञासु उसे गुरु मान ले यह बहुत बड़ी भगवदकृपा है। गुरु शिष्य नहीं बनायेगा,शिष्य को मन से गुरु मानना होगा। कोई महापुरुष किसी जीव को शिष्य तब तक न बनायेगा जब तक उसका अंत:करण पूर्णतया शुद्ध न हो जायेगा।

वास्तविक महापुरुष के सान्निध्य में संसार से सहज वैराग्य एवं भगवान में सहज अनुराग बढ्ने लगता है। तत्वज्ञान परिपक्व होने लगता है। जीव अवश्य महसूस करने लगता है कि वो कल्पना भी नहीं कर सकता था की भगवदविषय में कभी इतना मन लगने लगेगा, इतना समय वो दे पाएगा।

जय हो जय हो सद्गुरु सरकार बलिहार बलिहार।
तु तो कृपा रुप साकार बलिहार बलिहार ॥

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