Monday, July 8, 2013

स्वार्थ माने आनंद की भूख। हम आनंद रूपी भगवान् के अंश हैं , इसलिये नैचुरल आनंद चाहते हैं। ये कोई बुराई नहीं है।
स्वारथ साँचु जीव का एहा। मन क्रम वचन राम पग नेहा।
तो स्वार्थी बनना है , लेकिन सच्चा स्वार्थ। शरीर का स्वार्थ नहीं , शरीर को चलाने के लिये भगवान् ने संसार बनाया है। खाना खाओ , कपड़ा पहनो, विटामिन , प्रोटीन , सब ढंग से लो तो भजन कर सकोगे। साधना कर सकोगे। तो रो कर भगवान् से उनका दिव्य प्रेम , दिव्य दर्शन मांगो। संसार नहीं मांगना भगवान् से कभी चाहे प्राण जा रहे हों।
........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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