Friday, July 26, 2013

"Desire for the world cannot be destroyed so divert them towards the supreme God."
------SHRI MAHARAJJI.
मन एक समय में एक ही काम कर सकता है। मन के संयोग के बिना कोई काम नहीं हो सकता। किसी भी काम को मन लगाकर तो करना चाहिये किन्तु एटेचमेंट(attachment) भगवान में ही रखना चाहिए।
-------श्री महाराजजी।
हे श्रीकृष्ण ! यदि दीनता से ही तुम कृपा करते हो तो वह तो मेरे पास थोड़ा भी नहीं है ! अतः पहले ऐसी कृपा करो कि दीन भाव युक्त बनूँ ! ' ऐसा कह कर आँसू बहाओ ! यह करना पड़ेगा ! मानवदेह क्षणिक है ! जल्दी करो ! पता नहीं कब टिकिट कट जाय !

यह मेरा नम्र निवेदन सभी से है !
(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज).
There is no true happiness right up to the abode of Brahma and as this includes all the other celestial regions, it is obvious that expecting or aspiring to attain happiness from the limited luxuries of this material world is absolute madness. We must seriously reflect upon the fact that there is not a trace of true happiness anywhere apart from God, as all the other abodes are dominated by maya. It is impossible for the soul to attain bliss in any region where maya rules.
...........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु के श्रीमुख से:

क्रोध आया कि सर्वनाश हुआ। बदतमीज़ कहने पर 'बदतमीज़' बन गए। आप इतने मूर्ख हैं कि एक मूर्ख ने 'मूर्ख' कह कर आपको मूर्ख बना दिया।
Think that your worshipped form of God and Guru are always and everywhere with you as your guardians and observers.
इष्टदेव एवं गुरु को सदा सर्वत्र अपने साथ निरीकक्षक एवं संरक्षक के रूप में मानना है।
-------Jagadguru shri kripalu ji maharaj.
हम भगवान् के आगे , उनको सामने खड़ा करके, रो कर उनके दर्शन , उनका प्रेम माँगे बस यही भक्ति। रो कर अकड़ कर नहीं , जैसे कोई पानी में डूबने लगता है तो वो कितनी व्याकुलता में हाथ पैर उपर करता है , तैरना नहीं जानता है।जैसे मछली को बाहर दाल दो , कैसे तड़पती है पानी के लिये । ऐसे ही श्यामसुंदर के मिलन के लिये हमको तड़पना होगा। इस जन्म में अथवा हजार जन्म बाद फिर। और ये करना पड़ेगा।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
The uncontrolled mind is like an enemy. But when we teach it to love God, the mind becomes our best friend.
......SHRI MAHARAJ JI.
अपना जीवन अपना न मानो, अपने शरण्य का ही मानो। सदा यही सोचो कि उनकी सेवा में ही क्षण-क्षण व्यतीत हो।
------श्री महाराजजी।
अनंत जन्मों तक माथा पच्ची करने के पश्चात भी जो दिव्य ज्ञान हमें न मिलता वह हमारे गुरु ने इतने सरल और सहज रूप में हमें प्रदान कर दिया, अब इसके बाद हमारी ड्यूटि है कि उस तत्त्वज्ञान को बार-बार चिंतन द्वारा पक्का करके उसके अनुसार प्रैक्टिकल करें। अब हमने यहाँ लापरवाही की, एक ने कुछ परवाह की, एक ने और परवाह की, एक ने पूर्ण परवाह की, पूर्ण शरणागत हो गया, अब महापुरुष ने तो अकारण कृपा सबके ऊपर की, सबको समझाया। लेकिन उसमें एक घोर संसारी ही रहा, एक थोड़ा बहुत आगे बढ़ा, एक कुछ ज्यादा आगे बढ़ा, एक सब कुछ त्याग करके 24 घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति पर। पर जो 24 घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति हेतु क्या उसके ऊपर विशेष कृपा हुई, यह सोचना मूर्खता है। कृपा तो सब पर बराबर हुई लेकिन तपे लोहे पर पानी पड़ा छन्न, जल गया और कमल के पत्ते पर पड़ा तो मोती की तरह चमकने लगा और वही पानी अगर सीप में पड़ा स्वाति का तो मोती बन गया। पानी तो सब पर बराबर पड़ रहा है लेकिन जैसा पात्र है, जैसा मूल्य समझा जितना विश्वास किया जितना वैराग्य है जिसको उसका बर्तन उतना बना, उसके हिसाब से उसने उतना लाभ उठाया। तो महापुरुष की यह कृपा है तत्त्वज्ञान करवा देना। क्योंकि बिना तत्त्वज्ञान के हम साधना भी क्या करते, भगवदप्राप्ति का तो प्रश्न ही नहीं है। तर्क, कुतर्क, संशय ही करते रहते, इसी में पूरा जीवन बीत जाता, मानव देह व्यर्थ हो जाता। साधना करते भी तो अपने अल्पज्ञान या गलत ज्ञान के अनुसार ही करते जिससे कोई लाभ नहीं होता।
--------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाप्रभु।
हम लोग अपने स्वार्थ की द्रष्टि से गुरु तत्व को भगवान् से बड़ा मानते हैं। है नहीं , मानते हैं। क्योंकि भगवान् संबंधी समस्त वेद - ज्ञान गुरु देगा। मार्ग की बाधाओं को दूर करायेगा। अंतःकरण की शुद्धि पर प्रेमदान वही करेगा।
------श्री महाराज जी।
Shri Maharaj Ji reminds us

Chant ‘Radhey Radhey’ and make your human birth, which is inaccessible even to heavenly gods, a success. High position, foolishness, youth and wealth are all reasons for spiritual downfall.
देखिये ! संसार में चौरासी लाख प्रकार के शरीर हैं उसमें केवल मनुष्य शरीर ऐसा है जिसमें हम साधना के द्वारा दुःखों से छुटकारा पाकर आनंद प्राप्त कर सकते हैं। बहुत बार आप लोगों को बताया गया है कि इसलिये देवता भी इस मानव देह को चाहते हैं । सात अरब आदमियों में सात करोड़ भी ऐसे नहीं हैं जिनके ऊपर भगवान् की ऐसी कृपा हो कि कोई बताने बाला सही - सही ज्ञान करा दे कि क्या करने से तुम्हारे दुःख चले जायेंगे और आनंद मिल जायेगा। और जिन लोगों को ये सौभाग्य प्राप्त हो चुका है , ये जान चुके हैं किसी महापुरुष से वे लोग भी फिर चौरासी लाख का हिसाब बैठा रहे हैं। क्यों ? उत्तर है , लापरवाही ।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
हरि-गुरु को अपने साथ महसूस करना ही सबसे बड़ी साधना है।इससे हम अपराधों से भी बचे रहेंगे।
........श्री महाराजजी।
The eternal service of Shri Krishn is our ultimate goal. His eternal service could be attained only by His Divine Love, which in turn could be attained only through the grace of Guru. Guru’s grace is attained only after the complete purification of the mind. The mind can be purified only through devotional practice as prescribed by the Guru. Guru should be considered non-different from God.
.......SHRI MAHARAJJI.
अपनी बुराई सुनकर सौभाग्य मानकर विभोर हो जाओ कि यह हमारा हितैषी है। क्योंकि हमारे दोषों को देखकर बता रहा है। अत: उन बुराइयों को निकालो।
-----श्री महाराज जी।
We have been striving every moment since time immemorial to attain bliss and will continue to do so. Now the astonishing fact is that, in spite of our continuous efforts of countless lifetimes, we have not as yet attained this bliss. What is the reason for this? The fact is that we have not yet understood or made a firm decision as to what bliss is, where it is to be found and how it is to be attained?
........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
सदा ये ध्यान रखो कि हरि-गुरु सदा मुझे एवं मेरे संकल्पों को देख रहे हैं। बस फिर न लापरवाही ही आयेगी न विस्मरण ही होगा।
------श्री महाराज जी।
"What you need to know about Shree Maharajji is that if you have accepted him in your heart, then he has already accepted you. There does not have to be a formal recognition of that. Shree Maharajji does not do formal initiation, nor is there any need to verbally state that you have accepted him as your Guru. If you have surrendered to him internally, then he is already Gracing you. You should focus on applying his teachings in your life."
दिव्य प्रेमास्पद का दिव्य प्रेम ही सर्वोत्कृष्ट तत्व है। प्रेम का तात्पर्य तत्सुख सुखित्वं अर्थात प्रेमास्पद के सुख में ही सुख मानना है।
***** जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज*****
An anonymous devotee has said

Happy moments-Praise God.
Difficult moments-Seek God.
Quiet moments-Worship God.
Painful moments-Trust God.
Every moment-Thank God.
O Kishori Ji! Glance towards me with Your benevolent eyes. Your extremely powerful maya is making me dance in many ways. I am surrounded from all sides by powerful enemies such as lust, anger, greed, attachment and pride. Despite knowing the truth, this stubborn mind of mine refuses to accept it, and continues to go towards the world.
The mind is very fickle and uncontrollable. Through constant spiritual practice (attaching it to Shri Krishna) and detaching it from the world, you can bring it under control.
-----SHRI MAHARAJ JI.
When God is beyond our understanding, how can we expect to know Him? And without knowing Him we cannot have faith, without faith we cannot attain Him and without attaining Him, there is no question of attaining divine bliss, which is the goal of every living being. However, there have been those who have known God. On the one hand, the scriptures declare God to be unknowable and imperceptible and on the other, they state that He is knowable and perceptible. How will this problem be solved?
...........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
Both from the point of view of experiencing the highest and sweetest nectar of divine love, and because of the ease provided in the practice of devotion, meditating upon Lord Krishna is most appropriate. He is infinitely beautiful and charming being the ocean of nectarine bliss, the stealer of the hearts of surrendered souls, the Crest Jewel of the Rasiks and the Darling of Braj.
............JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
ये हरि-गुरु की इच्छा पर छोड़ दो कि वो कब क्या देते हैं,मिलन या वियोग। देने में भी विज्ञान है।अतएव वे जब जो कल्याणार्थ समझेंगे देंगे।
........श्री महाराजजी।
Never think of yourself to be alone. Always feel the presence of God and Guru as your protectors.
आँसू बहाने से अन्तःकरण शुद्ध होगा, याद कर लो सब लोग, रट लो ये कृपालु का वाक्य। भोले बालक बनकर रोकर पुकारो, राम दौड़े आयेंगे। सब ज्ञान फेंक दो, कूड़ा-कबाड़ा जो इकट्ठा किया है। अपने को अकिंचन, निर्बल, असहाय, दींन हीन, पापात्मा महसूस करो, भीतर से, तब आँसू की धार चलेगी, तब अन्तःकरण शुद्ध होगा, तब गुरु कृपा करेगा। गुरु की कृपा से राम के दर्शन होंगे, राम का प्यार मिलेगा और सदा के लिये आनन्दमय हो जाओगे.

-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
Our Guruvar Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj is grace and kindness personified. It means grace is all around, both inside and outside. This is how he truly is. The word Kripalu itself means one who showers grace and kindness all around. One may come to him with good intention or bad he will impart his grace on all regardless of their intention. It seems the whole existence of our Guruvar is made of grace. Every moment of life whether he is sleeping or awake, he is bestowing his grace on all living beings. The day we accept him as hundred per cent Kripalu, the Embodiment of Grace, we will attain our goal.
संत भोजपत्र के सामान निरन्तर दूसरों के लिये ही कष्ट सहते हैं। जीव कल्याण हित अपना सर्वस्व लुटा देते हैं।
-----श्री महाराज जी।
जब दीनता आयेगी तब आँसुओं के ढेर लगेंगे। प्रत्येक व्यक्ति तुमको अपने से ऊँची स्टेज का साधक लगेगा।
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज !!
जब तक अहंकार रहेगा , तब तक कीर्तन में आँसू नहीं आयेंगे।
......श्री महाराज जी।
मम शासक श्यामा जू, म पालाक श्यामा जू,
मम प्रेरक श्यामा जू, जय जय जय श्यामा जू ।

mama shasaka Shyama ju, mama palaka Shyama ju
mama preraka Shyama ju, jai jai jai Shyama ju

My governor is Shyama Ju; my nurturer is Shyama Ju.
My inspirer is Shyama Ju. All glories to Shyama Ju.
......SHRI MAHARAJ JI.
It is important that we learn to become neutral. We should never have any ill feelings towards anyone, even towards those who hate us and criticize us.
गुरुपूर्णिमा पर्व गुरु सेवा के लिए प्रेरित करता है । वस्तुतः गुरु पूर्णिमा का ताप्तर्य ही है गुरु चरणों में सर्व समर्पण करके भी सन्तुष्ट न होना क्योंकि सद्गुरु ऋण से कोई भी, कभी भी उऋण नहीं हो सकता ।

किसी को कभी किसी जन्म में श्रोत्रिय ब्रहमनिष्ठ महापुरुष गुरु मिल जाये और वह श्रद्धालु विरक्त जिज्ञासु उसे गुरु मान ले यह बहुत बड़ी भगवदकृपा है। गुरु शिष्य नहीं बनायेगा,शिष्य को मन से गुरु मानना होगा। कोई महापुरुष किसी जीव को शिष्य तब तक न बनायेगा जब तक उसका अंत:करण पूर्णतया शुद्ध न हो जायेगा।

वास्तविक महापुरुष के सान्निध्य में संसार से सहज वैराग्य एवं भगवान में सहज अनुराग बढ्ने लगता है। तत्वज्ञान परिपक्व होने लगता है। जीव अवश्य महसूस करने लगता है कि वो कल्पना भी नहीं कर सकता था की भगवदविषय में कभी इतना मन लगने लगेगा, इतना समय वो दे पाएगा।

जय हो जय हो सद्गुरु सरकार बलिहार बलिहार।
तु तो कृपा रुप साकार बलिहार बलिहार ॥
THE 'VEDAS' SAY THAT 'BHAKTI' IS THE ONLY SUPREME PATH TO GOD.'THE GITA' SAYS THAT 'SELFLESS BHAKTI' ENSURES "DIVINE VISION,DIVINE KNOWLEDGE,AND DIVINE UNITY" WITH THE SUPREME FORM OF GOD,'KRISHN'.AND THE 'BHAGWATAM' TELLS US THAT TO ATTAIN THE NECTAR OF THE BLISS OF 'KRISHN LOVE' THROUGH BHAKTI(DIVINE-LOVE-CONSCIOUSNESS) AND KEEP ON DRINKING IT FOREVER.
-----FIFTH ORIGINAL JAGADGURU SWAMI SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
Devotion to God is the only means to completely purify the heart.
अन्तःकरण शुद्धि के हेतु एकमात्र भगवत्भक्ति ही साधन है, अन्य कोई मार्ग नहीं।
......SHRI MAHARAJ JI.
SHREE MAHARAJJI REMINDS US:

Practise devotion in all places; don't even think that a place is dirty or impure and therefore unfit for prayer to god.God purifies everything that is impure,and he himself can never become impure in the process.God has simplified the practice of devotion to such an extent,that everyone can practise it in any circumstance.
Supreme God and the indidividual souls are chetana, live. In gist, this means they have senses, mind, intellect, physical form and they perform actions. The soul is not independent, it is a power of God and as such, it is called a part or ansha of God.
........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
ब्रह्म एक मधु रूप है , एक भ्रमर उनमान |
एक रूप रस देत है , एक आपु कर पान ||५२||

भावार्थ – रस स्वरुप ब्रह्म के दो स्वरुप होते हैं | एक रस रूप | दूसरा रसिक रूप | अर्थात एक मधु के समान | दूसरा भौंरे के समान | एक रूप से स्वयं रस पान करते हैं | दूसरे रूप से जीवों को भी वही रस पान कराते हैं |

(भक्ति शतक )
जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित |
A day of worry is more exhausting than a day of work. People get so busy worrying about yesterday or tomorrow, they forget about today. And today is what you have to work with.
The mind has to be forcibly removed from the wrong place. You have to remove it from the place it is attached and this will not happen unless you attach it to God.
My Beloved Lord! Make me so intoxicated with Your love that I may accept You as mine, without being concerned about whether or not You have accepted me.
There may be a delay in Your grace but never injustice in Your realm. This divine secret has been revealed to me by Your ‘Kripalu’ (merciful) Saints.
वेद से लेकर रामायण तक अनन्त कोटि कल्प तक अध्ययन करके देख लो यही पाओगे कि गुरु और भगवान् एक ही हैं , अतः गुरु - सेवा ही सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य है।

:::::::::जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज::::::::::
Krishna means 'One who attracts'. Through His beauty, Grace, sweetness, merciful nature and loving ways, the sweet Lord has the power to attract even the coldest heart, and lighten even the heaviest of minds. He showers Divine love on all, without giving any thought to whether or not the recipient is worthy of the gift.
How will we attain Shri Krishna? Through Shri Krishna’s grace or kripa.
.....SHRI MAHARAJ JI.
ब्रह्म सर्वव्यापक, है सर्वनियन्ता है, सर्वसृष्टा है। जबकि जीव व्याप्य है, नियम्य है, सृज्य है। जीव के ब्रह्म से अनेक संबंध हैं। वस्तुतः श्रीकृष्ण ही जीव के माता, पिता, भ्राता, स्वामी, सखा, पुत्र, प्रियतम, सब कुछ हैं। इन्हीं संबंधों से केवल श्रीकृष्ण की निष्काम सेवा करनी है।
........जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी।
महापुरुषों के स्मरणमात्र से ही अंतःकरण शुद्ध हो जाता है। फिर वह स्वयं साक्षात् आपके घर पर पधार जायें तब तो वो घर मंदिर बन जाता है , पवित्र हो जाता है। उनके दर्शन , स्पर्श , चरणप्रक्षालन और आसन दान आदि का सौभाग्य मिलने पर तो वो जीव धन्य हो जाता है , कृतकृत्य हो जाता है।
...........श्री महाराज जी।

Friday, July 12, 2013

"ALWAYS REMEMBER: God's names, forms, attributes, pastimes, abodes and His saints are all one and the same, therefore keeping your mind attached to any of these is known as devotion."