Friday, July 26, 2013
There
is no true happiness right up to the abode of Brahma and as this
includes all the other celestial regions, it is obvious that expecting
or aspiring to attain happiness from the limited luxuries of this
material world is absolute madness. We must seriously reflect upon the
fact that there is not a trace of true happiness anywhere apart from
God, as all the other abodes are dominated by maya. It is impossible for
the soul to attain bliss in any region where maya rules.
...........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
...........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
हम
भगवान् के आगे , उनको सामने खड़ा करके, रो कर उनके दर्शन , उनका प्रेम
माँगे बस यही भक्ति। रो कर अकड़ कर नहीं , जैसे कोई पानी में डूबने लगता है
तो वो कितनी व्याकुलता में हाथ पैर उपर करता है , तैरना नहीं जानता
है।जैसे मछली को बाहर दाल दो , कैसे तड़पती है पानी के लिये । ऐसे ही
श्यामसुंदर के मिलन के लिये हमको तड़पना होगा। इस जन्म में अथवा हजार जन्म
बाद फिर। और ये करना पड़ेगा।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
अनंत
जन्मों तक माथा पच्ची करने के पश्चात भी जो दिव्य ज्ञान हमें न मिलता वह
हमारे गुरु ने इतने सरल और सहज रूप में हमें प्रदान कर दिया, अब इसके बाद
हमारी ड्यूटि है कि उस तत्त्वज्ञान को बार-बार चिंतन द्वारा पक्का करके
उसके अनुसार प्रैक्टिकल करें। अब हमने यहाँ लापरवाही की, एक ने कुछ परवाह
की, एक ने और परवाह की, एक ने पूर्ण परवाह की, पूर्ण शरणागत हो गया, अब
महापुरुष ने तो अकारण कृपा सबके ऊपर की, सबको समझाया। लेकिन उसमें एक घोर
संसारी ही रहा, एक थोड़ा बहुत आगे बढ़ा, एक कुछ ज्यादा आगे बढ़ा, एक सब कुछ
त्याग करके 24 घंटे लग गया लक्ष्य प्राप्ति पर। पर जो 24 घंटे लग गया
लक्ष्य प्राप्ति हेतु क्या उसके ऊपर विशेष कृपा हुई, यह सोचना मूर्खता है।
कृपा तो सब पर बराबर हुई लेकिन तपे लोहे पर पानी पड़ा छन्न, जल गया और कमल
के पत्ते पर पड़ा तो मोती की तरह चमकने लगा और वही पानी अगर सीप में पड़ा
स्वाति का तो मोती बन गया। पानी तो सब पर बराबर पड़ रहा है लेकिन जैसा पात्र
है, जैसा मूल्य समझा जितना विश्वास किया जितना वैराग्य है जिसको उसका
बर्तन उतना बना, उसके हिसाब से उसने उतना लाभ उठाया। तो महापुरुष की यह
कृपा है तत्त्वज्ञान करवा देना। क्योंकि बिना तत्त्वज्ञान के हम साधना भी
क्या करते, भगवदप्राप्ति का तो प्रश्न ही नहीं है। तर्क, कुतर्क, संशय ही
करते रहते, इसी में पूरा जीवन बीत जाता, मानव देह व्यर्थ हो जाता। साधना
करते भी तो अपने अल्पज्ञान या गलत ज्ञान के अनुसार ही करते जिससे कोई लाभ
नहीं होता।
--------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाप्रभु।
--------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाप्रभु।
देखिये
! संसार में चौरासी लाख प्रकार के शरीर हैं उसमें केवल मनुष्य शरीर ऐसा है
जिसमें हम साधना के द्वारा दुःखों से छुटकारा पाकर आनंद प्राप्त कर सकते
हैं। बहुत बार आप लोगों को बताया गया है कि इसलिये देवता भी इस मानव देह को
चाहते हैं । सात अरब आदमियों में सात करोड़ भी ऐसे नहीं हैं जिनके ऊपर
भगवान् की ऐसी कृपा हो कि कोई बताने बाला सही - सही ज्ञान करा दे कि क्या
करने से तुम्हारे दुःख चले जायेंगे और आनंद मिल जायेगा। और जिन लोगों को ये
सौभाग्य प्राप्त हो चुका है , ये जान चुके हैं किसी महापुरुष से वे लोग भी
फिर चौरासी लाख का हिसाब बैठा रहे हैं। क्यों ? उत्तर है , लापरवाही ।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
The
eternal service of Shri Krishn is our ultimate goal. His eternal
service could be attained only by His Divine Love, which in turn could
be attained only through the grace of Guru. Guru’s grace is attained
only after the complete purification of the mind. The mind can be
purified only through devotional practice as prescribed by the Guru.
Guru should be considered non-different from God.
.......SHRI MAHARAJJI.
.......SHRI MAHARAJJI.
We
have been striving every moment since time immemorial to attain bliss
and will continue to do so. Now the astonishing fact is that, in spite
of our continuous efforts of countless lifetimes, we have not as yet
attained this bliss. What is the reason for this? The fact is that we
have not yet understood or made a firm decision as to what bliss is,
where it is to be found and how it is to be attained?
........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
"What
you need to know about Shree Maharajji is that if you have accepted him
in your heart, then he has already accepted you. There does not have to
be a formal recognition of that. Shree Maharajji does not do formal
initiation, nor is there any need to verbally state that you have
accepted him as your Guru. If you have surrendered to him internally,
then he is already Gracing you. You should focus on applying his
teachings in your life."
O
Kishori Ji! Glance towards me with Your benevolent eyes. Your extremely
powerful maya is making me dance in many ways. I am surrounded from all
sides by powerful enemies such as lust, anger, greed, attachment and
pride. Despite knowing the truth, this stubborn mind of mine refuses to
accept it, and continues to go towards the world.
When
God is beyond our understanding, how can we expect to know Him? And
without knowing Him we cannot have faith, without faith we cannot attain
Him and without attaining Him, there is no question of attaining divine
bliss, which is the goal of every living being. However, there have
been those who have known God. On the one hand, the scriptures declare
God to be unknowable and imperceptible and on the other, they state that
He is knowable and perceptible. How will this problem be solved?
...........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
...........JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
Both
from the point of view of experiencing the highest and sweetest nectar
of divine love, and because of the ease provided in the practice of
devotion, meditating upon Lord Krishna is most appropriate. He is
infinitely beautiful and charming being the ocean of nectarine bliss,
the stealer of the hearts of surrendered souls, the Crest Jewel of the
Rasiks and the Darling of Braj.
............JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
............JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
आँसू
बहाने से अन्तःकरण शुद्ध होगा, याद कर लो सब लोग, रट लो ये कृपालु का
वाक्य। भोले बालक बनकर रोकर पुकारो, राम दौड़े आयेंगे। सब ज्ञान फेंक दो,
कूड़ा-कबाड़ा जो इकट्ठा किया है। अपने को अकिंचन, निर्बल, असहाय, दींन हीन,
पापात्मा महसूस करो, भीतर से, तब आँसू की धार चलेगी, तब अन्तःकरण शुद्ध
होगा, तब गुरु कृपा करेगा। गुरु की कृपा से राम के दर्शन होंगे, राम का
प्यार मिलेगा और सदा के लिये आनन्दमय हो जाओगे.
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
Our
Guruvar Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj is grace and kindness
personified. It means grace is all around, both inside and outside. This
is how he truly is. The word Kripalu itself means one who showers grace
and kindness all around. One may come to him with good intention or bad
he will impart his grace on all regardless of their intention. It seems
the whole existence of our Guruvar is made of grace. Every moment of
life whether he is sleeping or awake, he is bestowing his grace on all
living beings. The day we accept him as hundred per cent Kripalu, the
Embodiment of Grace, we will attain our goal.
गुरुपूर्णिमा
पर्व गुरु सेवा के लिए प्रेरित करता है । वस्तुतः गुरु पूर्णिमा का
ताप्तर्य ही है गुरु चरणों में सर्व समर्पण करके भी सन्तुष्ट न होना
क्योंकि सद्गुरु ऋण से कोई भी, कभी भी उऋण नहीं हो सकता ।
किसी को
कभी किसी जन्म में श्रोत्रिय ब्रहमनिष्ठ महापुरुष गुरु मिल जाये और वह
श्रद्धालु विरक्त जिज्ञासु उसे गुरु मान ले यह बहुत बड़ी भगवदकृपा है। गुरु
शिष्य नहीं बनायेगा,शिष्य को मन से गुरु मानना होगा। कोई महापुरुष किसी
जीव को शिष्य तब तक न बनायेगा जब तक उसका अंत:करण पूर्णतया शुद्ध न हो
जायेगा।
वास्तविक महापुरुष के सान्निध्य में संसार से सहज वैराग्य
एवं भगवान में सहज अनुराग बढ्ने लगता है। तत्वज्ञान परिपक्व होने लगता है।
जीव अवश्य महसूस करने लगता है कि वो कल्पना भी नहीं कर सकता था की
भगवदविषय में कभी इतना मन लगने लगेगा, इतना समय वो दे पाएगा।
जय हो जय हो सद्गुरु सरकार बलिहार बलिहार।
तु तो कृपा रुप साकार बलिहार बलिहार ॥
गुरुपूर्णिमा
पर्व गुरु सेवा के लिए प्रेरित करता है । वस्तुतः गुरु पूर्णिमा का
ताप्तर्य ही है गुरु चरणों में सर्व समर्पण करके भी सन्तुष्ट न होना
क्योंकि सद्गुरु ऋण से कोई भी, कभी भी उऋण नहीं हो सकता ।
किसी को कभी किसी जन्म में श्रोत्रिय ब्रहमनिष्ठ महापुरुष गुरु मिल जाये और वह श्रद्धालु विरक्त जिज्ञासु उसे गुरु मान ले यह बहुत बड़ी भगवदकृपा है। गुरु शिष्य नहीं बनायेगा,शिष्य को मन से गुरु मानना होगा। कोई महापुरुष किसी जीव को शिष्य तब तक न बनायेगा जब तक उसका अंत:करण पूर्णतया शुद्ध न हो जायेगा।
वास्तविक महापुरुष के सान्निध्य में संसार से सहज वैराग्य एवं भगवान में सहज अनुराग बढ्ने लगता है। तत्वज्ञान परिपक्व होने लगता है। जीव अवश्य महसूस करने लगता है कि वो कल्पना भी नहीं कर सकता था की भगवदविषय में कभी इतना मन लगने लगेगा, इतना समय वो दे पाएगा।
जय हो जय हो सद्गुरु सरकार बलिहार बलिहार।
तु तो कृपा रुप साकार बलिहार बलिहार ॥
किसी को कभी किसी जन्म में श्रोत्रिय ब्रहमनिष्ठ महापुरुष गुरु मिल जाये और वह श्रद्धालु विरक्त जिज्ञासु उसे गुरु मान ले यह बहुत बड़ी भगवदकृपा है। गुरु शिष्य नहीं बनायेगा,शिष्य को मन से गुरु मानना होगा। कोई महापुरुष किसी जीव को शिष्य तब तक न बनायेगा जब तक उसका अंत:करण पूर्णतया शुद्ध न हो जायेगा।
वास्तविक महापुरुष के सान्निध्य में संसार से सहज वैराग्य एवं भगवान में सहज अनुराग बढ्ने लगता है। तत्वज्ञान परिपक्व होने लगता है। जीव अवश्य महसूस करने लगता है कि वो कल्पना भी नहीं कर सकता था की भगवदविषय में कभी इतना मन लगने लगेगा, इतना समय वो दे पाएगा।
जय हो जय हो सद्गुरु सरकार बलिहार बलिहार।
तु तो कृपा रुप साकार बलिहार बलिहार ॥
THE
'VEDAS' SAY THAT 'BHAKTI' IS THE ONLY SUPREME PATH TO GOD.'THE GITA'
SAYS THAT 'SELFLESS BHAKTI' ENSURES "DIVINE VISION,DIVINE KNOWLEDGE,AND
DIVINE UNITY" WITH THE SUPREME FORM OF GOD,'KRISHN'.AND THE 'BHAGWATAM'
TELLS US THAT TO ATTAIN THE NECTAR OF THE BLISS OF 'KRISHN LOVE' THROUGH
BHAKTI(DIVINE-LOVE-CONSCIOUSNE SS) AND KEEP ON DRINKING IT FOREVER.
-----FIFTH ORIGINAL JAGADGURU SWAMI SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
-----FIFTH ORIGINAL JAGADGURU SWAMI SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
SHREE MAHARAJJI REMINDS US:
Practise devotion in all places; don't even think that a place is dirty
or impure and therefore unfit for prayer to god.God purifies everything
that is impure,and he himself can never become impure in the
process.God has simplified the practice of devotion to such an
extent,that everyone can practise it in any circumstance.
Practise devotion in all places; don't even think that a place is dirty or impure and therefore unfit for prayer to god.God purifies everything that is impure,and he himself can never become impure in the process.God has simplified the practice of devotion to such an extent,that everyone can practise it in any circumstance.
ब्रह्म एक मधु रूप है , एक भ्रमर उनमान |
एक रूप रस देत है , एक आपु कर पान ||५२||
भावार्थ – रस स्वरुप ब्रह्म के दो स्वरुप होते हैं | एक रस रूप | दूसरा
रसिक रूप | अर्थात एक मधु के समान | दूसरा भौंरे के समान | एक रूप से स्वयं
रस पान करते हैं | दूसरे रूप से जीवों को भी वही रस पान कराते हैं |
(भक्ति शतक )
जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित |
एक रूप रस देत है , एक आपु कर पान ||५२||
भावार्थ – रस स्वरुप ब्रह्म के दो स्वरुप होते हैं | एक रस रूप | दूसरा रसिक रूप | अर्थात एक मधु के समान | दूसरा भौंरे के समान | एक रूप से स्वयं रस पान करते हैं | दूसरे रूप से जीवों को भी वही रस पान कराते हैं |
(भक्ति शतक )
जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित |
Krishna
means 'One who attracts'. Through His beauty, Grace, sweetness,
merciful nature and loving ways, the sweet Lord has the power to attract
even the coldest heart, and lighten even the heaviest of minds. He
showers Divine love on all, without giving any thought to whether or not
the recipient is worthy of the gift.
ब्रह्म
सर्वव्यापक, है सर्वनियन्ता है, सर्वसृष्टा है। जबकि जीव व्याप्य है,
नियम्य है, सृज्य है। जीव के ब्रह्म से अनेक संबंध हैं। वस्तुतः श्रीकृष्ण
ही जीव के माता, पिता, भ्राता, स्वामी, सखा, पुत्र, प्रियतम, सब कुछ हैं।
इन्हीं संबंधों से केवल श्रीकृष्ण की निष्काम सेवा करनी है।
........जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी।
........जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी।
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