Saturday, November 19, 2016

<ईश्वर सर्वव्यापक है>
कुछ लोग कहते हैं कि घड़ी अपने आप चलती है ऐसे ही सृष्टि भी अपने आप हो जायगी, किन्तु उन्हें सोचना चाहिये कि घड़ी पूर्व में नहीं चलती थी जब किसी ने उसे बनाया तब चलने लगी एवं पश्चात् भी नहीं चलेगी अर्थात् नष्ट हो जायगी, तब फिर बनानी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त यह भी विचारणीय है कि घड़ी बनाने वाले ने घड़ी तो बनायी है किन्तु उस घड़ी के लौह परमाणुओं की क्रिया को घड़ीसाज नहीं जानता अर्थात् उस पर कन्ट्रोल नहीं कर सकता। उसे कन्ट्रोल करने वाला ईश्वर है। अतएव ईश्वर को सर्वव्यापक होना पड़ता है अन्यथा वे परमाणु ठीक रूप से काम नहीं कर सकते।
प्रेम रस सिद्धान्त,
रचयिता- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
संस्करण 2010, अध्याय 1: जीव का चरम लक्ष्य, पृ. 17

भावार्थः- भगवान् संसार की रचना करते हैं, उसका पालन करते हैं और अंत में उसका प्रलय कर देते हैं अर्थात् यह सम्पूर्ण संसार ईश्वर से प्रकट हुआ है, ईश्वर द्वारा इसका पालन किया जाता है और अंत में फिर यह सम्पूर्ण संसार ईश्वर में समा जाता है। संसार का नियामक ईश्वर है। इस संसार के प्रत्येक परमाणु में ईश्वर व्याप्त है, अतः ईश्वर सर्वव्यापक है। सृष्टि का पालन एवं उसकी रक्षा करने के लिये भगवान् संसार के प्रत्येक परमाणु में व्याप्त होते हैं।
------ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

No comments:

Post a Comment