तुम
बुद्धि को स्थिर करो तथा यह सोचा करो कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ और वह भी
अपने प्रेमास्पद की ही हूँ , उनके लिए ही हूँ। सदा यही सोचो कि मैं संसार
की नहीं , मैं तो गोलोक वाले की हूँ। मुझे संसार अपने अन्डर में नहीं कर
सकता। मैं मायिक धोखों के चक्कर में नहीं आऊँगी। सदा अपने प्रेमास्पद की
कृपा पर बलिहार जाओ।
!!!!! जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु !!!!!
!!!!! जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु !!!!!