Thursday, May 21, 2020

भगवान् की कोई चीज लिमिटेड नहीं होती।
अनंत नाम, अनंत गुण, अनंत लीला,
अनंत धाम, अनंत संत, अनंत ब्रह्माण्ड,
सब सामान उनका अनंत होता है—
संख्याचेत् रजसामस्ति न विश्वानां कदाचन।
(देवी पुराण)
यो वा अनन्तस्य गुणाननन्ताननुक्रमिष्यन् स तु बालबुद्धिः।
(११-४-२, भागवत)
जो भगवान् के, श्रीकृष्ण के गुणों की संख्या करे,
इतने गुण हैं, लिखे हैं, चौंसठ गुण,
भक्तिरसामृत सिन्धु वगैरह में।
ये क्या है?
वो बाल बुद्धि, वो बच्चा है, जो कहता है, इतने गुण हैं।
अनंत हैं—
गुणात्मनस्तेऽपि गुणान् विमातुं हितावतीर्णस्य क ईशिरेऽस्य।
(भागवत १०-१४-७)
कौन समर्थ है उनके गुणों को गिनने में?
नान्तं गुणानामगुणस्य जग्मुः।
(१-१८-१४, भागवत)
अनंत गुण हैं, अनंत नाम हैं,
‘अनंत नाम रूपाय’ सब जानते हैं—
कं ब्रह्म खं ब्रह्म ।
(छान्दोग्योपनिषद् ४-१०-५)
ये क, ख, ‘अकारो वासुदेवः’, सब भगवान् के नाम हैं।
अरे बताओ यशोदा मैया ने कभी ‘कृष्णाय नमः’ कहा है क्या?
ओ कनुआ! इधर आ, ओ बलुआ कहाँ गया?
ये लो। हा-हा! वो तो—
भावग्राह्यमनीडाख्यं भावाभावकरं शिवम्।
(श्वेताश्वतरोपनिषद्, ५-१४)
वो...ये सब पण्डिताई नहीं देखते भगवान्।
वो तो प्रेम देखते हैं।
तो वेद में चार प्रकार के मन्त्र हैं
और देखने में, सुनने में, पढ़ने में, विरोधी लगते हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है। वो सब सही हैं।
उनका समन्वय केवल भगवान् कर सकते हैं या
सिद्ध महापुरुष।
अहाऽऽ
वेदो नारायणः साक्षात्
(भागवत् ६-१-४०)
वेदव्यास का चैलेंज है।
वेद भगवान् के स्वरूप हैं—
वेदस्य चेश्वरात्मत्वात् तत्र मुह्यन्ति सूरयः॥
(भागवत् ११-३-४३)
अरे ब्रह्मा नहीं समझ सका बेचारा—
तेने ब्रह्म हृदा य आदि कवये मुह्यन्ति यत्सूरयः।
(भागवत् १-१-१)
इसीलिये वेद कहता है—
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्
समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्॥
(१-२-१२, मुण्डकोपनिषद्)
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

No comments:

Post a Comment