ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
( गीता.४-११ )
अर्थात् भोले लोग समझते हैं कि मैं आत्माराम पूर्णकाम हूँ। अतएव कुछ नहीं करता। यद्यपि जनसाधारण के लिये यह ठीक है,किन्तु यदि कोई मेरी शरण में आता है, तो मैं उसकी सेवा करता हूँ। जैसे नवजात शिशु की सेवा माँ करती है वैसे ही मैं शरणागत का भजन करता हूँ।आपको यदि यह विश्वास हो जाय कि भगवान् हम नगण्य जीवों का भजन केवल शरणागति मात्र से ही करते हैं तो तत्क्षण आप शरणागत हो जायें।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
( गीता.४-११ )
अर्थात् भोले लोग समझते हैं कि मैं आत्माराम पूर्णकाम हूँ। अतएव कुछ नहीं करता। यद्यपि जनसाधारण के लिये यह ठीक है,किन्तु यदि कोई मेरी शरण में आता है, तो मैं उसकी सेवा करता हूँ। जैसे नवजात शिशु की सेवा माँ करती है वैसे ही मैं शरणागत का भजन करता हूँ।आपको यदि यह विश्वास हो जाय कि भगवान् हम नगण्य जीवों का भजन केवल शरणागति मात्र से ही करते हैं तो तत्क्षण आप शरणागत हो जायें।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
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