Friday, July 14, 2017

महाप्रभु जी कहते हैं—
आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टुमां अदर्शनान्मर्महतां करोतु वा।
यथा तथा वा विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्तु स एव नापरः।।

हे श्यामसुन्दर! तुम क्या कर सकते हो? तीन काम कर सकते हो।चाहे मुझसे प्यार कर लो आलिंगन करके और चाहे उदासीन हो जाओ, न्यूट्रल। और चाहे चक्र चला दो। हम सबमें तैयार हैं। हमारे प्यार में कमी नहीं होगी। इसको प्रेम कहते हैं।
क्योंकि वो तत्त्वज्ञ जान चुका हैकि जितना हम प्यार करेंगे,जितनी शरणागति होगी,
उतनी ये भी कर रहे हैं। ये बाहर कुछ भी व्यवहार करें,हम व्यवहार देखेंगे नहीं।
वो बढ़ता जायेगा उसका प्रेम।संसारी मामलों में व्यवहार के अनुसार प्यार बढ़ा-घटा, बढ़ा-घटा, ज़ीरो, अबाउट टर्न।यहाँ नाटक होता रहता है। उधर कोई डाउट(doubt) नहीं।

---- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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