Friday, July 8, 2016

जो मेरी ही शरण में आ जाता है उसके अनन्त जन्म के पाप को नाश कर देता हूँ ! तो फिर पाप पाप की बात क्यों खोपड़ी में लगी है तेरे ? मैं पूर्ण शरणागत के थोड़े से पापों को नहीं , 'सर्वपापेभ्यो ' समस्त पापों को नष्ट कर देता हूँ और आगे पाप न करेगा ये ठेका ले लेता हूँ ! गारण्टी ! लेकिन प्रपन्न होना होगा ! प्रपन्न माने पूर्ण शरणागति यानी मन बुद्धि भी शरणागत हो ! अपनी बुद्धि न लगा ! मन भी मुझे दे दे !
.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ।

No comments:

Post a Comment