Monday, October 5, 2015

हमारे गुरुदेव काशी विद्वत परिषद द्वारा घोषित 'जगद्गुरुत्तम' पदवी से विभूषित सर्वमान्य 'जगद्गुरु' हैं किन्तु मजे की बात यह है कि हमारे गुरुदेव को किसी ने भी अब तक किसी को भी शिष्य बनाते नहीं देखा,यह भी आजतक उनको किसी से कहते नहीं सुना गया कि 'तू मेरा शिष्य है',या अब से तू मेरा शिष्य हो गया जब की भारतवर्ष में अनेक गुरुओ द्वारा कान फूंकना,मंत्र देना,शिष्य बनाना एक साधारण बात है,साधारण क्या,competition चल रहा है खुले आम। कोई रोकने,टोकने,बोलने वाला नहीं उनको,एक हमारे गुरुवर के अलावा।
हमारे गुरु के दर पर जो भी आये उसका एड्मिशन हो जाता है। डी.लिट।ज्ञानी,विज्ञानी,अंगूठा छाप,टेढ़ामेढ़ा,कोई भी हो कैसा भी हो,सबको एक ही क्लास में एड्मिट कर लिया जाता है।यहाँ अनेक व्यक्ति ऐसे भी हैं जो वर्षों से श्री महाराजजी के सत्संग में आते जाते रहे हैं:साधना हाल क्लास में बैठते रहें,परंतु श्री गुरुदेव को अपना गुरुदेव नहीं माना खूब परखने के बाद ही मन से मानना प्रारम्भ किया कि ये वोही हैं जिनकी हमे तलाश थी,हमारे गुरुदेव हैं।यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि मन से गुरु मानना है,ऊपरी आडंबर से कुछ काम बनने वाला नहीं है। हम जितनी मात्रा में जितने परसेंट गुरु की शरणागति करेंगे उतने ही परसेंट गुरुदेव भी हमे अपनाएँगे। हम 100 परसेंट शरणागति तो करते नहीं और चाहते हैं वो हमे अपना शिष्य मान ले।
वे तो हमारे सदा से सुहृदय हैं,हितकारी हैं,माता-पिता जैसा प्यार तो हमे प्रारम्भ से ही मिलने लगता है,चाहे हम उन्हे गुरु माने या नहीं। रूपध्यान करते हुए भगवन नाम संकीर्तन हम सब की साधना है। 'गुप्त मंत्र' जैसी कोई वस्तु उनके दरबार नहीं है। न ही यहाँ कोई गुरुडम है।हमारे गुरुदेव का कहना है कि किसी श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ भगवत प्राप्त महापुरुष को ही गुरु रूप में धारण करना चाहिये। हम साधको को निजी अनुभव है कि ये वो ही 'श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ भगवतप्राप्त महापुरुष' ही हैं। वे सदा अपने आप को छिपाते हैं,उनको पहचानना कठिन है,किन्तु अपने शरणागत को तो उन्हें अपना स्वरूप उसके अनुरूप दिखलाना ही पड़ता है,उचित वातावरण मिलते ही जन साधारण के बीच भी उनका स्वरूप बरबस प्रकट हो ही जाता है।श्री महाराजजी को सदा 24 घंटे जिसने भी देखा है यही अनुभव है कि किसी न किसी रूप में वे हरि भजन करवा रहे होते हैं। उनके सत्संग में संसार तो एकदम भूल जाता है साधक,हरि-गुरु से ऑटोमैटिक अनुराग,एवं संसार से वैराग्य अपने आप होने लगता है।संसार की सच्चाई स्वत: ही साफ-साफ समझ आने लग जाती है।

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