Monday, October 5, 2015

संसार प्रत्यक्ष है , यह दिखाई नहीं पड़ता है , आँख से। इसके शब्द सुनाई पड़ते हैं ,कान से।
माँ को देखा , बाप को देखा , बीबी को देखा। उसकी आवाज सुना मीठी - मीठी। कान को मीठी लगी आवाज। उसका स्पर्श किया। ये जो सब विषय मिल रहे हैं प्रत्यक्ष , इससे हमारा मन खिंच जाता है।
और भगवान् के बारे में ? वो तो तुलसी , सूर , मीरा , कबीर , शंकराचार्य , निम्बार्काचार्य , वल्लभाचार्य , लैक्चर दे रहे हैं। किताबों में पढ़ रहे हैं गीता , भागवत , रामायण। सामने तो दिखाई नहीं पड़ते भगवान्।
यह अंतर है। प्रत्यक्ष में जल्दी आकर्षण होता है। वह परोक्ष है भगवान् , इसलिए इमीडिएटली अटैचमेन्ट नहीं हो सकता।
..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

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