Monday, August 27, 2012

हौं मानत हौं सदा को, हौं पातक अवतार।
अधम उधारन विरद पर, तुम तो करहु विचार।।
हे श्रीकृष्ण! अनादिकाल से मैंने सदा पाप ही किया है,यह में मानता हूँ। किन्तु तुम भी तो अपनी पतित पावनी प्रतिज्ञा पर विचार करो।
-----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.




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