Wednesday, December 19, 2018

पथिक तुम, इतनो कहियो जाय।
अब न कबहुँ कछु कहहुँ लाल सों, एक बार आ जाय।
ऊखल माहिं न कबहुँ बाँधिहौं, कितै उरहनो आय।
माखन–चोरी ते न रोकिहौं, करे जोइ मनभाय।
जो कोउ ब्रज में कान्हहिं छेड़े, वाको दऊँ बँधाय।
मोको माय न माने तबहूँ, नातो माने धाय।
इमि ‘कृपालु’ कहि यशुमति विलपति, दृग अँसुवन झरि लाय।।
भावार्थ:– (यशोदा जी अपने लाला के वियोग में एक पथिक से श्रीकृष्ण के लिए संदेश भेजती हैं।)
यशोदा जी कहती हैं कि हे राहगीर! तुम मेरे लाला से इतनी ही कह देना कि वह एक बार आकर और देख जाय। यदि उसे कोई कष्ट हो तो फिर चला जाय। मैं अब अपने लाला से कभी कुछ नहीं कहूँगी एवं गोपियों के कितने ही उलाहने क्यों न आयें मैं अपने लाला को कभी भी ऊखल में नहीं बाँधूंगी। मक्खन चुराने से भी मैं अब कभी नहीं रोकूँगी। उसकी जो इच्छा हो वही करे। जो कोई ब्रज में मेरे कन्हैया को छेड़ेगा उसे बँधा दूँगी। हे पथिक! मेरे लाला से कहना कि यदि वह मेरे पास मैया के नाते न आ सके तो भी कम–से-कम पालने वाली धाय के ही नाते आ जाय। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि यशोदा जी पथिक से अपने लाला के लिए इस प्रकार सन्देश कहती हुई आँखों से आँसुओं की झड़ी लगाकर विविध प्रकार से विलाप करने लगीं।
(प्रेम रस मदिरा:-विरह–माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।

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