Wednesday, October 3, 2018

हे #प्राणेश्वर ! #कुंजबिहारी #श्रीकृष्ण ! तुम ही मेरे #जीवन #सर्वस्व हो । हमारा–तुम्हारा यह #सम्बन्ध सदा से है एवं सदा रहेगा (अज्ञानतावश मैं इस सम्बन्ध को भूल गयी)।तुम चाहे मेरा #आलिंगन करके मुझे अपने गले से लगाते हुए, मेरी #अनादिकाल की #इच्छा पूर्ण करो, चाहे #उदासीन बनकर मुझे #तड़पाते रहो, चाहे पैरों से ठोकर मार-मारकर मेरा सर्वथा परित्याग कर दो। #प्राणेश्वर ! तुम्हें जिस-जिस प्रकार से भी #सुख मिले, वही करो मैं तुम्हारी हर इच्छा में प्रसन्न रहूंगी । ‘#श्री #कृपालु #जी’ कहते हैं कि #निष्काम #प्रेम का स्वरूप ही यही है कि अपनी #इच्छाओं को न देखते हुए, प्रियतम की प्रसन्नता में ही प्रसन्न रहा जाय । अपने #स्वार्थके लिए प्रियतम से बदला पाने की #भावना से प्रेम करना #व्यवहार #जगत का #नाटकीय#व्यापार सा ही है।

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