Wednesday, October 3, 2018

कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।
नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते॥
(भागवत १०-२९-१५)
#काम#क्रोध#स्नेह#भय किसी भी #भाव से अगर #मन में #भगवान् को लावे, तो उसका मन भगवान् से मिल कर #शुद्ध हो जायेगा। #गंगा जी में प्यार से #यमुना जी मिलें तो भी #प्रयाग से वह गंगा जी कहलायेंगी। और चाहे कोई कुल्ला कर दे #पापात्मा, वो कुल्ला, उसका मुँह से उच्छिष्ट पानी, गंगा जी नदी में मिल गया, अब वो गंगा जी हो गया। इतनी नदियाँ मिलती हैं गोमुख के बाद बंगाल की खाड़ी तक, कितने झरने मिलते हैं, सब गंगा जी बन गए।
गंगा जी गन्दी नहीं होतीं, जो गंगा जी से मिलता है, वो शुद्ध हो जाता है, गंगा बन जाता है।
संसार में भी यह बता रहे हैं।
रवि पावक सुरसरि की नाईं।
अग्नि में तमाम मुर्दे जलते हैं और हवन भी होता है।देवताओं को। अग्नि कहता है, हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा,
जो हमारे अन्दर आएगा, मैं अग्नि बना दूँगा। जला दूँगा।
मैं तो शुद्ध रहूँगा ही। सूर्य कितनी गन्दी चीज़ों में पड़ता है
और शुद्ध वस्तु में भी पड़ता है, लेकिन वो गन्दा नहीं होता। तो, भगवान् या महापुरुष जो शुद्ध हैं,
उससे अशुद्ध व्यक्ति प्यार करेगा, तो वो अशुद्ध शुद्ध हो जायेगा। शुद्ध अशुद्ध नहीं होगा।

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