Saturday, August 11, 2018

सारी गीता क्या है?
अर्जुन कहता है—
मैं युद्ध नहीं करूँगा। इनको मारना है?
हाँ, और किसको मारने आया है? 
ऐ! राम राम राम राम मैं नहीं युद्ध करता।
क्यों रे! द्वारिका में जब तू मेरी हेल्प लेने गया था
और ये तेरा दुश्मन दुर्योधन भी गया था, याद कर।
तो मैंने कहा था
कि भई, एक पार्टी में तो १८ अक्षौहिणी सेना हथियारबंद रहेगी
और एक पार्टी में मैं अकेला, बिना हथियार उठाये।
तुम दोनों में चुन लो।
तो तुमने क्या चुना था? हमको न?
हाँ हाँ, याद है।
तो तब क्या मालूम नहीं था, किससे लड़ना है,
किसको मारना है?
नहीं, मालूम था।
तो आज क्या नई बात हो गई, जो कहता है युद्ध नहीं करूँगा?
*******
न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह॥
युद्ध नहीं करूँगा,
ओ कृष्ण! सुन लो।
ऐ ऐ! और मैं आपका शिष्य हूँ—
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।
आपके शरणागत हूँ,
खाली ‘पन्न’ नहीं हूँ, ‘प्रपन्न’ हूँ।
‘पन्न’ माने, जैसे हम लोग गुरु और भगवान् को प्रणाम करते हैं न, लेट गये।
ये ‘पन्न’ है।
और ‘प्रपन्न’ माने मन से उनकी आज्ञा मानना।
तो कहता है— ‘शिष्यस्तेऽहं’,
मैं आपका शिष्य हूँ
और ‘शाधि’ आज्ञा दो।
आज्ञा दो, वो मैं मानूँगा, ‘प्रपन्न’ हूँ।
तो उस समय भगवान् कह देते, युद्ध कर।
युद्ध नहीं करूँगा।
ये लो। हा-हा! एक तरफ कहता है, मैं ‘प्रपन्न’ हूँ, आज्ञा दो।
और दूसरी तरफ कहता है, युद्ध नहीं करूँगा।
ये गुरु को डाँट रहा है।
क्यों नहीं करेगा?
ये अधर्म होगा, पाप होगा, ये सब मरेंगे,
इनकी स्त्रियाँ विधवा होगीं, वो करैक्टरलैस होंगी,
हाऽ! क्या होगा भविष्य में।
तो भगवान् ने कहा—
ऐसा है कि तू धर्म की शरण में भी है और मेरी शरण में भी है। दो शरणागति हैं तेरी इस समय।
तो १८ अध्याय के अन्त में भगवान् ने कहा—
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
सब धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जा।
‘एकं’ माने अनन्य।
‘एकं’ माने और कामना न रहे, निष्काम।
और ये जो तू पाप-पाप कर रहा है न,
तो पाप और पुण्य का फल तो मैं ही देता हूँ न?
तो मेरा क़ानून है कि
अगर कोई मेरी शरणागति में न हो
और किसी के मर्डर की सोचे भी, तो पाप।
करे तो दूर की बात।
लेकिन अगर मेरे शरणागत है उसका मन,
तो फिर किसी कर्म का फल नहीं मिलेगा।
क्योंकि पाप को मैं माफ़ कर देता हूँ, ये मेरा क़ानून है।
लॉ के अन्तर्गत है।
हर क़ानून में सब-सेक्शन हुआ करता है हमारी गवर्नमेंट में।
तो धर्म का पालन न करेगा तो पाप होगा,
तो दण्ड मिलेगा, ये लॉ।
सब-सेक्शन आया।
लेकिन अगर कोई मेरी शरणागति में आ गया,
तो उसको पाप नहीं लगेगा।
क्योंकि उसका मन मुझमें है।
और प्रत्येक कर्म का कर्ता मन होता है।
बस हो गई गीता।
उसी को इतना लम्बा-चौड़ा लेक्चर
१८ अध्याय में समझाने के लिये करना पड़ा।

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