Saturday, August 11, 2018

हे!अकारण करुण पतितपावन!
अनन्तानन्त जन्मों में अनन्तानन्त स्त्री - पतियों से अनन्तानन्त बार जूते, लात, चप्पल खाकर भी उनसे वैराग्य नहीं हुआ । भगवत्सम्बन्धी बातें पढते, सुनते, मानते हुए भी मन हठ नहीं छोडता । तुम्हारी कृपा के बिना इन्द्रियों की विषयासक्ति नहीं छुट सकती । अत: हे कृपालु ! अपनी अकारण करुणा से मुझे अपना लो । ....... अत: हे करुणासिन्धु, दीनबन्धु, मेरे श्रीकृष्ण ! तुम अपनी अकारण करुणा का स्वरुप प्रकट करते हुए मुझे अपना लो । मैं तो अनन्त जन्मों का पापी हूँ किन्तु तुम तो पतितपावन हो । यही सोचकर तुम्हारे द्वार पर आ गया ।

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