पहले #नदी पार हो जाओ ,तब #नाव को चैलेंज करो। अगर 10 फीट भी अभी नदी पार करना शेष है ,जहाँ #अगाध पानी है सिर के ऊपर और आपने कहा - अब क्या है, कूद पड़ो। न, न अभी #ख़तरा है, #संकट अभी टला नहीं है। #नामापराध यानि #संत के प्रति #अपराधकर देने पर ,#भावभक्ति पर जाकर (जब #भगवतदर्शन होने वाला होता है) वह उच्च कोटि का #साधक भी #अभाव भक्ति यानि भक्ति में #शून्यता को प्राप्त हो जाता है, #साधारण_जीव की क्या #हैसियत?
Tuesday, August 14, 2018
अरे मन! अस तृष्णा बलवान।
बड़े बड़े भूपति भये भूतल, उदय अस्त लौं भान।
तिनहुँन की सोइ दशा रही जो, एक भिखारिहिं जान।
यह तृष्णा नहिं छोड़ति इंद्रहुँ, जेहि सुरपति सब मान।
जब लौ नहिं सुमिरहु मन निशिदिन, सुंदर श्याम सुजान।
तब लौ सुख ‘कृपालु’ नहिं पैहौं, वेद पुरान प्रमान।।
बड़े बड़े भूपति भये भूतल, उदय अस्त लौं भान।
तिनहुँन की सोइ दशा रही जो, एक भिखारिहिं जान।
यह तृष्णा नहिं छोड़ति इंद्रहुँ, जेहि सुरपति सब मान।
जब लौ नहिं सुमिरहु मन निशिदिन, सुंदर श्याम सुजान।
तब लौ सुख ‘कृपालु’ नहिं पैहौं, वेद पुरान प्रमान।।
भावार्थ:- अरे मन! यह तृष्णा इतनी बलवती है कि इस पृथ्वी पर बड़े-बड़े राजा हुए जिनका सम्पूर्ण धरातल पर राज्य था किंतु उनकी दशा भी ठीक एक भिखारी के समान थी। कहाँ तक कहें यह तृष्णा देवराज इन्द्र को भी नहीं छोड़ती जिसे सब देवताओं का स्वामी मानते हैं। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं, हे मन! वेद पुराण चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि जब तक तू श्यामसुन्दर का निरन्तर स्मरण नहीं करेगा तब तक सुख न पा सकेगा।
(प्रेम रस मदिरा:-सिद्धान्त-माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
#भक्तियोगरसावतार #भगवतीनंदन #सद्गुरु के #मार्गदर्शन में #भक्तियोग की #साधनाकरने वाले #भक्तों द्वारा #भक्ति स्वरुप #गुरुवर को कोटि कोटि #प्रणाम।
भक्ति की #अविरल_धारा प्रवाहित करके #असंख्य_जीवों का #कल्याण करने वाले #सदगुरुदेव को कोटि कोटि प्रणाम।
भक्ति महादेवी को जन जन के हृदय में स्थापित करके भक्तियोग रसावतार स्वरुप को प्रमाणित करने वाले #भक्तिरस_सिंधु प्रिय गुरुवर को #सहस्त्रों #भक्तों का #भक्तियुक्तप्रणाम।
यह तो #संसार है इसमे सब कुछ कहने वाले लोग हैं ,#सही भी,#गलत भी। फिर गलत कहने वाले तो 99 परसेंट(percent) हैं, #सत्वगुणी #बुद्धि हुई तो सत्वगुणी बात कहने लगे, #रजोगुणी बुद्धि हुई तो हमारा निर्णय रजोगुणी हो गया, #तमोगुणी बुद्धि हुई तो एक दम से तमोगुण बात बोलने लगे। इसलिये जब हमारी स्वयं की बुद्धि ही एक सी नहीं रहती तो दूसरों से हम क्यों आशा करते हैं कि वह हमारी बात का समर्थन ही करेगा। ये कभी #सतयुग में नहीं हुआ,#त्रेतायुग में नहीं हुआ,#द्वापर में नहीं हुआ,फ़िर आज क्यों होगा? सारे #संतों ने इसलिए लिखा "तुम किसी की और मत देखो न किसी की सुनों बस,अपना काम करो।"
If you listen to the lectures of such a person who is neither a God-realised soul nor well-versed in the scriptures, you will become confused and find fault with him. It will be disadvantageous to you to have malevolence against him. You will gain nothing from his muddle and harm yourself. Therefore, get rid of this constant running from one place to another, from one Guru to another. People practice this throughout their entire life. They attend and consult with all the pundits, babas and gurus with no result in hand through this jockeying. We have wasted innumerable lives in these false pursuits.
Saturday, August 11, 2018
अरे मूर्ख मन ! इस परम अन्तरंग तत्वज्ञान को समझ ले। तीन तत्व नित्य हैं – पहला ईश्वर, दूसरा जीव, एवं तीसरा तत्व माया । इनमें माया चिदानन्दमय ईश्वर की जड़ शक्ति है एवं जीव चिदानन्दमय ईश्वर का सनातन दास है, जिसे वेदादिकों में अंश शब्द से विहित किया गया है। जीवात्मा देही है तू उसको देह मान रहा है, बस यही अनादिकालीन तेरा अज्ञान है । जो इस बात को जितना जान लेता है, उतना ही उस पर विश्वास भी कर लेता है, उसके जानने की यही पहिचान है। पुन: जो जितनी मात्रा में उपर्युक्त बात पर विश्वास कर लेता है, उतनी ही मात्रा में अपने आप उसका श्यामसुन्दर के चरणों में अनुराग हो जाता है।‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं :- अरे मन ! अब मनमानी छोड़ दे, एवं मनमोहन में रूपध्यान द्वारा अपने आप को अनुरक्त कर ।
( #प्रेम_रस_मदिरा: सिद्धान्त–माधुरी )
---#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
--- सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति।
---#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
--- सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति।
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।
नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते॥
(भागवत १०-२९-१५)
नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते॥
(भागवत १०-२९-१५)
काम, क्रोध, स्नेह, भय किसी भी भाव से अगर मन में भगवान् को लावे, तो उसका मन भगवान् से मिल कर शुद्ध हो जायेगा। गंगा जी में प्यार से यमुना जी मिलें तो भी प्रयाग से वह गंगा जी कहलायेंगी। और चाहे कोई कुल्ला कर दे पापात्मा, वो कुल्ला, उसका मुँह से उच्छिष्ट पानी, गंगा जी नदी में मिल गया, अब वो गंगा जी हो गया। इतनी नदियाँ मिलती हैं गोमुख के बाद बंगाल की खाड़ी तक, कितने झरने मिलते हैं, सब गंगा जी बन गए।
गंगा जी गन्दी नहीं होतीं, जो गंगा जी से मिलता है, वो शुद्ध हो जाता है, गंगा बन जाता है।
संसार में भी यह बता रहे हैं।
रवि पावक सुरसरि की नाईं।
अग्नि में तमाम मुर्दे जलते हैं और हवन भी होता है।देवताओं को। अग्नि कहता है, हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा,
जो हमारे अन्दर आएगा, मैं अग्नि बना दूँगा। जला दूँगा।
मैं तो शुद्ध रहूँगा ही। सूर्य कितनी गन्दी चीज़ों में पड़ता है
और शुद्ध वस्तु में भी पड़ता है, लेकिन वो गन्दा नहीं होता। तो, भगवान् या महापुरुष जो शुद्ध हैं,
उससे अशुद्ध व्यक्ति प्यार करेगा, तो वो अशुद्ध शुद्ध हो जायेगा। शुद्ध अशुद्ध नहीं होगा।
गंगा जी गन्दी नहीं होतीं, जो गंगा जी से मिलता है, वो शुद्ध हो जाता है, गंगा बन जाता है।
संसार में भी यह बता रहे हैं।
रवि पावक सुरसरि की नाईं।
अग्नि में तमाम मुर्दे जलते हैं और हवन भी होता है।देवताओं को। अग्नि कहता है, हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा,
जो हमारे अन्दर आएगा, मैं अग्नि बना दूँगा। जला दूँगा।
मैं तो शुद्ध रहूँगा ही। सूर्य कितनी गन्दी चीज़ों में पड़ता है
और शुद्ध वस्तु में भी पड़ता है, लेकिन वो गन्दा नहीं होता। तो, भगवान् या महापुरुष जो शुद्ध हैं,
उससे अशुद्ध व्यक्ति प्यार करेगा, तो वो अशुद्ध शुद्ध हो जायेगा। शुद्ध अशुद्ध नहीं होगा।
ये पाँच कर्मेन्द्रियाँ,पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ,पाँच प्राण,मन,बुद्धि,अहंकार... ये अठारह तत्व मरने के बाद भी साथ जाया करते हैं हर योनि में हर जन्म में। ये आपकी बुद्धि इसी जन्म की नहीं है,ये अनन्त जन्मों की पली पोसी बड़ी डेवलप(Develop) की हुई बुद्धि है। लेकिन केवल इतना ही सीखा आपकी बुद्धि ने कि संसारी स्वार्थ सिद्धि के लिये क्या क्या करना चाहिये संसारियों के प्रति। वो आप करते हैं। सफलता मिली,कम मिली,नहीं मिली,कहीं उल्टा हो जाता है, कहीं चप्पलें मिलती हैं बीच बीच में आपको। लेकिन आप उसी क्षेत्र में हैं अपना उसी में आगे बढ़ रहे हैं।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
हे!अकारण करुण पतितपावन!
अनन्तानन्त जन्मों में अनन्तानन्त स्त्री - पतियों से अनन्तानन्त बार जूते, लात, चप्पल खाकर भी उनसे वैराग्य नहीं हुआ । भगवत्सम्बन्धी बातें पढते, सुनते, मानते हुए भी मन हठ नहीं छोडता । तुम्हारी कृपा के बिना इन्द्रियों की विषयासक्ति नहीं छुट सकती । अत: हे कृपालु ! अपनी अकारण करुणा से मुझे अपना लो । ....... अत: हे करुणासिन्धु, दीनबन्धु, मेरे श्रीकृष्ण ! तुम अपनी अकारण करुणा का स्वरुप प्रकट करते हुए मुझे अपना लो । मैं तो अनन्त जन्मों का पापी हूँ किन्तु तुम तो पतितपावन हो । यही सोचकर तुम्हारे द्वार पर आ गया ।
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