Thursday, January 19, 2017

श्री महाराजजी से प्रश्न : महाराज जी क्या आप दीक्षा देते हैं ?
श्री महाराजजी द्वारा उत्तर: देते हैं । अधिकारी को देते हैं। दीक्षा माने समझते हो ? दीक्षा माने दिव्य प्रेम । वो दिव्य प्रेम पाने के लिये दिव्य बर्तन चाहिए। यानि दिव्य अन्तःकरण । ये अंतःकरण जो है, ये मायिक है, प्राकृत है, ये दिव्य प्रेम को सहन नहीं कर सकता। किसी भिखारी की एक करोड़ की लाटरी खुल जाती है तो हार्टफेल हो जाता है उसका। तो अनन्त आनन्दयुक्त जो प्रेम है, वह प्राकृत अन्तःकरण में नहीं समा सकता। तो पहले अन्तःकरण शुद्धि करनी होगी।
ये बाबा लोग आजकल जो ठगते हैं लोगों को कान फूँक- फूँक करके, ये सब वेद विरुद्ध है। ये पाप कर रहे हैं, उनको सबको नरक मिलेगा, हजारों- लाखों वर्ष का। और ये जो कान फुँकाते हैं, इन मूर्खों को इतनी समझ नहीं है कि गुरु जी से पूँछे कि आप क्या दे रहे हैं ? मंत्र ! ये मन्त्र का क्या मतलब है ? हरेक मंत्र का यह अर्थ है कि हे भगवान् ! आपको नमस्कार है । वो अगर हिन्दी में कहें , उर्दू में कहें, पंजाबी , बंगाली , मद्रासी में कहें , तो भगवान् खुश नहीं होंगे ? और फिर अगर तुम कहते हो हमारे मंत्र में पॉवर है, तो तुमने जब कान में दिया तो उस पॉवर की फीलिंग क्यों नहीं हुई। मामूली से करेन्ट को छूने से तो सारा शरीर काँप जाता है और तुम स्प्रिचुअल हैप्पीनेस दिव्यानन्द दे रहे हो कान में, और हमको कोई फीलिंग नहीं। हमारी हालत और फटीचर होती जा रही है । और कान फुँकाये बैठे हैं। तो फिर तुमने क्या दिया ? ये सब धोखा है। पहले भक्ति करनी होगी। जब अन्तःकरण शुद्ध हो जायगा, तब गुरु एक पॉवर देगा, तब अन्तःकरण दिव्य बन जायगा , तब भगवत्प्रेम मिलेगा फिर भगवत्प्राप्ति, माया निवृत्ति , सब इकठ्ठा काम खत्म ।
अरे तमाम मंत्र तो लिखे हैं , पुस्तकों में, वो कान में क्या दे रहे हैं ? हजारों मंत्र शास्त्रों में, भागवत वगैरह सबमे लिखे हैं, कोई भी पढ़े अपना जपे, उससे क्या होगा ?

------ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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