Wednesday, March 2, 2016

प्यार तीन प्रकार का होता है । मोटी अकल से समझे रहो हमेशा के लिये । एक भीतर भी प्यार हो बाहर भी प्यार हो ठीक-ठीक और एक भीतर प्यार हो लेकिन बाहर आउट न किया जाय और तीसरा प्यार एक और होता है भीतर प्यार हो सेंट परसेंट लेकिन बाहर विपरीत व्यवहार किया जाय । इसमें तीसरा वाला तो महापुरुष के लिये खिलवाड़ है , भगवान् के लिये खिलवाड़ है । वह तो विनोदी है न , करते रहते हैं जान बूझकर चिढ़ाने के लिये कि देखें इसका प्यार सच्चा है कि कच्चा है । उल्टा व्यवहार करेंगे । अब अगर आप सचमुच प्यार करते हैं , तब तो आप मुस्कुरा देंगे । ठीक है , ठीक है , ठीक है । जब श्रीकृष्ण नें उल्टा व्यवहार किया भीष्म पितामह के साथ , चक्र लेकर दौड़े रथ का पहिया मारने के लिये , तो भीष्म पितामह हंसने लगे , गुस्सा नहीं किया और कहा , आओ आओ न , खड़े क्यों हो गये ? जरा देखें तुम्हारी हिम्मत हो तो आगे आओ ।
अब बताओ शत्रु इतना बड़ा शत्रु जिसके संकल्प से अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड भस्म हो जायें , वह गुस्से में भौंहे ताने , दांत पीसते हुये , पसीना-पसीना लहू लुहान , सारे शरीर से खून बह रहा है , सारे शरीर को छेद डाला भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण , अर्जुन दोनों के शरीर को । इतनी भयानक स्थिति में भी और भगवान् क्रोध की अन्तिम सीमा में एक्टिंग करते हुये , रथ की पहिया लेकर दौड़े सीना तानकर और भीष्म पितामह हंस रहे थे और कहते हैं यह एक्टिंग किसी और के साथ करना , मैं सब जानता हूँ , आओ आगे आओ , एक कदम चलकर रुक क्यों गये ? हमको सब पता है । अन्दर प्यार भरे हैं भीष्म पितामह के प्रति अनन्त और बाहर से ये विरोध की एक्टिंग कर रहे हैं विपरीत व्यवहार । और इसी विरोधी विपरीत व्यवहार वाली मुद्रा का ही ध्यान करते हुए शरशैय्या पर भीष्म पितामह छह महीने " वा पट पीत की फहरान " वह नहीं भूलती । पीताम्बर फहरा रहा है और भौहें तनी हैं और दांत पीस रहे हैं । क्या बढ़िया झाँकी है बड़ी अच्छी एक्टिंग कर लेते हैं ।
तो विपरीत व्यवहार जो करता है आम तौर से जो करता है वह अनुकूल व्यवहार करे तो समझो भारी कृपा है वरना तो उसको विपरीत व्यवहार करना ही चाहिये क्योंकि वह, क्योंकि वह क्या बतावें , क्योंकि गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः रसिकों के जगत में उनको आदेश है कि प्रेम को छुपाओ छुपाओ छुपाओ । और छुपाने का क्या तरीका है ? उल्टा व्यवहार करो । बस कोई नहीं जानेगा ।
----- जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज।

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