Thursday, May 30, 2013
मन प्रतिक्षण कर्म करता है...........
एक क्षण को मन चुप नहीं रहेगा। तो संसार में राग नहीं है, द्वेष नहीं है, तो मन कहेगा हमको काम बताओ। लो भई, संसार में नहीं जाते हम । लेकिन हमको काम बताओ, हम खड़े नहीं रह सकते। साइकिल चलती रहे, उसको घुमा दो, दायें बायें अगर चलना बन्द किया तो गिर जाओगे।
एक पण्डित जी ने भूत सिद्ध किया, भूत। तो वो भूत उनको परेशान करने लगा। हर समय कहे, पण्डित जी काम बताओ। तो किसी आदमी का काम कितना होगा। वो पण्डित जी सो जायें तो जगावे, पण्डित जी काम बताओ। देखिये पण्डितजी, मैंने आपको कहा था न हमको काम बताते रहना पड़ेगा। हम खाली नहीं बैठेंगे। तो पहले तो कह दिया पण्डित जी ने, हाँ-हाँ, लेकिन अब उनका सोना मुश्किल हो गया। वो गये एक महात्मा के पास। अरे महाराज! हम तो अच्छे फँसे, वो भूत सिद्ध किया, वो तो हर समय परेशान करता है कि हमको काम बताओ। तो उनने कहा ऐसा करो, एक बाँस गाड़ दो और उससे कहो-देखो जब तक काम न बतावें तब तक इसके ऊपर चढ़ो-उतरो, चढ़ो-उतरो, ऐसे किया करो।
...
भगवद्-भक्ति,
रचयिता- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रथम संस्करण मार्च 2008, प्रवचन -4, पृ. 24
भावार्थः- मन, भगवान् द्वारा मनुष्य को प्रदान किया गया एक ऐसा यन्त्र है, जो एक क्षण को भी अकर्मा नहीं रह सकता, ये प्रतिक्षण कर्म करता है। दो ही क्षेत्र हैं, जहाँ मन कर्म कर सकता है-एक है भगवान् का क्षेत्र और एक है संसार का क्षेत्र, तीसरा कोई क्षेत्र है ही नहीं। मन या तो संसार से प्रेम करेगा अर्थात् संसार में आसक्त होगा अथवा भगवान् से अनुराग करेगा, लेकिन इन दोनों में से एक कार्य उसको करना पड़ेगा, क्योंकि मन एक क्षण के सौवें भाग के लिये भी खाली नहीं रह सकता।
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु.
एक क्षण को मन चुप नहीं रहेगा। तो संसार में राग नहीं है, द्वेष नहीं है, तो मन कहेगा हमको काम बताओ। लो भई, संसार में नहीं जाते हम । लेकिन हमको काम बताओ, हम खड़े नहीं रह सकते। साइकिल चलती रहे, उसको घुमा दो, दायें बायें अगर चलना बन्द किया तो गिर जाओगे।
एक पण्डित जी ने भूत सिद्ध किया, भूत। तो वो भूत उनको परेशान करने लगा। हर समय कहे, पण्डित जी काम बताओ। तो किसी आदमी का काम कितना होगा। वो पण्डित जी सो जायें तो जगावे, पण्डित जी काम बताओ। देखिये पण्डितजी, मैंने आपको कहा था न हमको काम बताते रहना पड़ेगा। हम खाली नहीं बैठेंगे। तो पहले तो कह दिया पण्डित जी ने, हाँ-हाँ, लेकिन अब उनका सोना मुश्किल हो गया। वो गये एक महात्मा के पास। अरे महाराज! हम तो अच्छे फँसे, वो भूत सिद्ध किया, वो तो हर समय परेशान करता है कि हमको काम बताओ। तो उनने कहा ऐसा करो, एक बाँस गाड़ दो और उससे कहो-देखो जब तक काम न बतावें तब तक इसके ऊपर चढ़ो-उतरो, चढ़ो-उतरो, ऐसे किया करो।
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भगवद्-भक्ति,
रचयिता- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
प्रथम संस्करण मार्च 2008, प्रवचन -4, पृ. 24
भावार्थः- मन, भगवान् द्वारा मनुष्य को प्रदान किया गया एक ऐसा यन्त्र है, जो एक क्षण को भी अकर्मा नहीं रह सकता, ये प्रतिक्षण कर्म करता है। दो ही क्षेत्र हैं, जहाँ मन कर्म कर सकता है-एक है भगवान् का क्षेत्र और एक है संसार का क्षेत्र, तीसरा कोई क्षेत्र है ही नहीं। मन या तो संसार से प्रेम करेगा अर्थात् संसार में आसक्त होगा अथवा भगवान् से अनुराग करेगा, लेकिन इन दोनों में से एक कार्य उसको करना पड़ेगा, क्योंकि मन एक क्षण के सौवें भाग के लिये भी खाली नहीं रह सकता।
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु.
संत और भगवान दया के सिवाय ओर कुछ कर नहीं सकते अपनी बुद्धि मे जोड़ दो बस पूर्ण शरणागति यही है ।
प्रत्येक अवस्था में दया कौनसी है यह समझ में नहीं आता, कृपालु संत की कृपा का लाभ वही उठा सकता है जो उनकी कृपा के तत्व को समझता है ।
संत भी ऐसे मनुष्य को पाप से नहीं बचा सकता जो उनके कथनानुसार नहीं चलता।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
प्रत्येक अवस्था में दया कौनसी है यह समझ में नहीं आता, कृपालु संत की कृपा का लाभ वही उठा सकता है जो उनकी कृपा के तत्व को समझता है ।
संत भी ऐसे मनुष्य को पाप से नहीं बचा सकता जो उनके कथनानुसार नहीं चलता।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
भगवान् और संत ये दो पर्सनेलिटी ऐसी हैं जो शरीर से अलग हुए तो दिखायी पड़ते हैं | एक्टिंग में किसी को छोड़कर जीवनभर को वियोगी बना सकते हैं लेकिन अन्दर से कभी भी अलग नहीं हो सकते | हमारा शरीर नहीं रहता, तब भी वे रहते हैं | नरक में भी वो हमारे साथ रहते हैं और बैकुण्ठ में भी वे हमारे साथ रहते हैं | वे हमारा साथ छोड़ देंगे ऐसा कभी समझना ही नहीं चाहिए | समझना ही नहीं - अनुभव करना चाहिए |
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.
लगति सखि अब ससुरारि पियारि |
अब लौं रह अनजान पिया ते, रही उमरिया वारि |
अब दिय रसिक बताय पिया तव, मोहन मदन मुरारि |
अब न सुहात खेल गुड़ियन इन, दंपति पितु महतारि |
अब सोइ नाम रूप गुन लीला, धाम जनहिं मन हारि |कह ‘कृपालु’ जेहि चहत पिया बस, सोइ सुहागिनि नारि ||
भावार्थ - अरी सखी ! अब तो ससुराल ही अच्छी लगती है | अब तक मैं अपने प्रियतम को नहीं जानती थी, मायाधीन होने के कारण अज्ञानी थी, किन्तु अब रसिकों ने बता दिया है कि तेरे प्रियतम एकमात्र मदन - मोहन श्यामसुन्दर ही हैं | अब स्त्री, पति, माता, पिता, आदि संसार के नातेदार गुड़ियों के खेल के समान प्रतीत होते हैं | अब तो प्रियतम श्यामसुन्दर के ही नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, जन में ही मन अनुरक्त रहता है | ‘श्री कृपालु जी’ प्रेम भरी ईष् र्या में कहते हैं जिसको पिया चाहे वही सुहागिन नारी है | तेरे ऊपर श्यामसुन्दर की कृपा हो गई क्योंकि तूने रसिकों की बात पर विश्वास कर लिया | कभी हमारा भी समय आयेगा |
( प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
अब लौं रह अनजान पिया ते, रही उमरिया वारि |
अब दिय रसिक बताय पिया तव, मोहन मदन मुरारि |
अब न सुहात खेल गुड़ियन इन, दंपति पितु महतारि |
अब सोइ नाम रूप गुन लीला, धाम जनहिं मन हारि |कह ‘कृपालु’ जेहि चहत पिया बस, सोइ सुहागिनि नारि ||
भावार्थ - अरी सखी ! अब तो ससुराल ही अच्छी लगती है | अब तक मैं अपने प्रियतम को नहीं जानती थी, मायाधीन होने के कारण अज्ञानी थी, किन्तु अब रसिकों ने बता दिया है कि तेरे प्रियतम एकमात्र मदन - मोहन श्यामसुन्दर ही हैं | अब स्त्री, पति, माता, पिता, आदि संसार के नातेदार गुड़ियों के खेल के समान प्रतीत होते हैं | अब तो प्रियतम श्यामसुन्दर के ही नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, जन में ही मन अनुरक्त रहता है | ‘श्री कृपालु जी’ प्रेम भरी ईष् र्या में कहते हैं जिसको पिया चाहे वही सुहागिन नारी है | तेरे ऊपर श्यामसुन्दर की कृपा हो गई क्योंकि तूने रसिकों की बात पर विश्वास कर लिया | कभी हमारा भी समय आयेगा |
( प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
Do not spoil your idle time.In fact,we do not make good use of our spare time and that causes negative feelings of despair to set in.The best remedy of this problem is not to let your mind remain idle.Wherever you go,engage yourself in the thoughts of God.
------- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj."
------- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj."
देखिये ! संसार में चौरासी लाख प्रकार के शरीर हैं उसमें केवल मनुष्य शरीर ऐसा है जिसमें हम साधना के द्वारा दुःखों से छुटकारा पाकर आनंद प्राप्त कर सकते हैं। बहुत बार आप लोगों को बताया गया है कि इसलिये देवता भी इस मानव देह को चाहते हैं । सात अरब आदमियों में सात करोड़ भी ऐसे नहीं हैं जिनके ऊपर भगवान् की ऐसी कृपा हो कि कोई बताने बाला सही - सही ज्ञान करा दे कि क्या करने से तुम्हारे दुःख चले जायेंगे और आनंद मिल जायेगा। और जिन लोगों को ये सौभाग्य प्राप्त हो चुका है , ये जान चुके हैं किसी महापुरुष से वे लोग भी फिर चौरासी लाख का हिसाब बैठा रहे हैं। क्यों ? उत्तर है , लापरवाही ।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
श्री महाराज के श्री मुख से ----भगवान् कहते हैं -
अन्त समय में जो मुझको स्मरण करता है। मुझको ही स्मरण करते हुये शरीर छोड़ता है। दोनों शब्दों पर ध्यान दो। ' मां एव ' केवल मुझको स्मरण करे मरते समय , केवल मुझको। ' भी ' नहीं। तो -
वो मेरे लोक को आता है।
स्मरण करना होगा , मन से।
राम श्याम , ओम कोई भगवन्नाम लो साथ में मेरा स्मरण करो। तब मुझको प्राप्त करोगे। खाली नाम से नहीं। यानी तुम्हारी भावना होनी चाहिये इस नाम मैं भगवान् बैठे हैं।
अन्त समय में जो मुझको स्मरण करता है। मुझको ही स्मरण करते हुये शरीर छोड़ता है। दोनों शब्दों पर ध्यान दो। ' मां एव ' केवल मुझको स्मरण करे मरते समय , केवल मुझको। ' भी ' नहीं। तो -
वो मेरे लोक को आता है।
स्मरण करना होगा , मन से।
राम श्याम , ओम कोई भगवन्नाम लो साथ में मेरा स्मरण करो। तब मुझको प्राप्त करोगे। खाली नाम से नहीं। यानी तुम्हारी भावना होनी चाहिये इस नाम मैं भगवान् बैठे हैं।
सखि कालि लखी नँदलाल रे |
गई रही कछु काम महरि घर, तहँ खेलत गोपाल रे |
सिर पर वाके मोर चंद्रिका, लट कारी घुंघराल रे |
पीत झँगुलिया झलमल झलकत, हलकत कुंडल गाल रे |
कटि किंकिनि पग पायल बाजति, चलत घुटुरुवनि चाल रे |
... लखतहिं मदन गुपाल सखी मैं, भई हाल बेहाल रे |
जो ‘कृपालु’ सब जगहिं नचावत, नाचत यशुमति ताल रे ||
भावार्थ - एक सखी अपनी अन्तरंग सखी से कहती है, अरी सखी ! कल मैंने बालकृष्ण को देखा | मैं यशोदा मैया के घर कुछ काम से गयी थी | वहाँ वह खेल रहे थे | उनके सिर पर मोर मुकुट सुशोभित था | उनके बाल अत्यन्त घुँघराले थे | उनके शरीर पर पीले रंग की झँगुली झलमला रही थी | उनके कान के कुण्डल गाल पर हिल रहे थे | उनकी कमर में किंकिणि एवं पैर में पायल बज रही थीं | वह घुटनों के बल चल रहे थे | अरी सखी ! उन मदन गोपाल को देखते ही मैं तत्काल पागल सी हो गयी | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि सब से आश्चर्य की बात तो यह है कि जो सारे संसार को अपनी माया से नचाता है उसको भी मैया अपने हाथों की तालियों से नचा रही थी |
( प्रेम रस मदिरा श्री कृष्ण – बाल लीला – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
गई रही कछु काम महरि घर, तहँ खेलत गोपाल रे |
सिर पर वाके मोर चंद्रिका, लट कारी घुंघराल रे |
पीत झँगुलिया झलमल झलकत, हलकत कुंडल गाल रे |
कटि किंकिनि पग पायल बाजति, चलत घुटुरुवनि चाल रे |
... लखतहिं मदन गुपाल सखी मैं, भई हाल बेहाल रे |
जो ‘कृपालु’ सब जगहिं नचावत, नाचत यशुमति ताल रे ||
भावार्थ - एक सखी अपनी अन्तरंग सखी से कहती है, अरी सखी ! कल मैंने बालकृष्ण को देखा | मैं यशोदा मैया के घर कुछ काम से गयी थी | वहाँ वह खेल रहे थे | उनके सिर पर मोर मुकुट सुशोभित था | उनके बाल अत्यन्त घुँघराले थे | उनके शरीर पर पीले रंग की झँगुली झलमला रही थी | उनके कान के कुण्डल गाल पर हिल रहे थे | उनकी कमर में किंकिणि एवं पैर में पायल बज रही थीं | वह घुटनों के बल चल रहे थे | अरी सखी ! उन मदन गोपाल को देखते ही मैं तत्काल पागल सी हो गयी | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि सब से आश्चर्य की बात तो यह है कि जो सारे संसार को अपनी माया से नचाता है उसको भी मैया अपने हाथों की तालियों से नचा रही थी |
( प्रेम रस मदिरा श्री कृष्ण – बाल लीला – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
Grace and God are one, just like the Divine Bliss and God are one. It means that God Himself is the form of Grace and God Himself is the form of the Bliss. Grace is such a power of God with which all of His absolute and unlimited virtues are revealed. It is the Grace of God that makes a Saint experience His absolute Bliss, beauty and love; and it is the same power of Grace through which a Saint imparts God realization to his disciple. God and Grace are one and the same. So wherever God is, Grace is there.
.......JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
.......JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
Tuesday, May 28, 2013
साधकों को सावधान करते हुये कहा गया है ; भगवान् एवं भगवज्जन के कार्य लीला मात्र हैं। लीला रसास्वादन हेतु होता है। बुद्धि का प्रयोग लीला में वर्जित है। भगवान् के सभी नाम , रूप , लीला , गुण , धाम व जन दिव्य हैं। यानी सांसारिक बुद्धि का प्रयोग करने से जीव भ्रम में पड़ जायगा। ' संशयात्मा विनश्यति ' रामावतार में सीता को खोजते हुये , अज्ञता का अभिनय करते हुये श्रीराम को देखकर सती को भ्रम हो गया। वे उन्हें साधारण राजकुमार समझ कर परीक्षा ले बैठीं। परिणाम स्वरूप भगवान् शिव ने उसका परित्याग कर दिया। पुनः पार्वती के रूप में भगवान् शिव के मुख से श्रद्धा पूर्वक रामचरित्र सुना। सती द्वारा संशय किये जाने से संसार को रामचरित्र प्राप्त हुआ। सती ने स्वयं शंका कर संसार को यह दिखाया कि भगवत्लीला में संशय नहीं करना चाहिये।
(-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)
(-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)
Realise the importance of the human birth and do not waste it in merely eating, drinking and making merry. This human body is inaccessible even to celestial gods. Having attained this precious birth, if we still fail to attain our ultimate aim in life, we will later regret our foolishness, because there is no other form of life in which we will be able to do anything towards the attainment of our ultimate goal. It is necessary therefore to think about what we are looking for in life.
------jagadguru shri kripalu ji maharaj.
------jagadguru shri kripalu ji maharaj.
God made many things in pairs but He made only one mind. He is very clever indeed! God knew that, if He gave us two minds we would attach one to the world and the other to Him and still lay claim to being His devotees. So, he gave us a single mind. Whether we attach it to Him, or to the world, the choice and decision is ours; it can be attached only to one place.
.......SHRI MAHARAJJI.
.......SHRI MAHARAJJI.
God cannot be attained by any objective deeds, religiosity, performances of fire-sacrifices, meditation, austerity, fasting etc. God wants us to turn towards Him as we naturally are, without any make-ups....He loves us, He never leaves us and He is always ready to reciprocate our love...All we have to do is to turn our minds towards Him with favorable feelings desiring to revive our lost relation with Him......
You all are requested to like this page.......Radhey-Radhey.
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Shri Maharaj Ji says:
You listen to lectures; you say, how wonderfully you spoke! But when it comes to accepting the teachings, sometimes you accept them completely, sometimes only 50%, sometimes 1%, and sometimes you become totally neutral. But if you resolve to work hard, you can become like Tulsidas, Meera, Kabir, Nanak and Tukaram. These saints were once just like us. But they became serious about devotion. They resolved to work hard, and became saints.
You listen to lectures; you say, how wonderfully you spoke! But when it comes to accepting the teachings, sometimes you accept them completely, sometimes only 50%, sometimes 1%, and sometimes you become totally neutral. But if you resolve to work hard, you can become like Tulsidas, Meera, Kabir, Nanak and Tukaram. These saints were once just like us. But they became serious about devotion. They resolved to work hard, and became saints.
The eternal service of Shri Krishn is our ultimate goal. His eternal service could be attained only by His Divine Love, which in turn could be attained only through the grace of Guru. Guru’s grace is attained only after the complete purification of the mind. The mind can be purified only through devotional practice as prescribed by the Guru. Guru should be considered non-different from God.
.......SHRI MAHARAJJI.
.......SHRI MAHARAJJI.
संत और भगवान दया के सिवाय ओर कुछ कर नहीं सकते अपनी बुद्धि मे जोड़ दो बस पूर्ण शरणागति यही है ।
प्रत्येक अवस्था में दया कौनसी है यह समझ में नहीं आता, कृपालु संत की कृपा का लाभ वही उठा सकता है जो उनकी कृपा के तत्व को समझता है ।
संत भी ऐसे मनुष्य को पाप से नहीं बचा सकता जो उनके कथनानुसार नहीं चलता।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
प्रत्येक अवस्था में दया कौनसी है यह समझ में नहीं आता, कृपालु संत की कृपा का लाभ वही उठा सकता है जो उनकी कृपा के तत्व को समझता है ।
संत भी ऐसे मनुष्य को पाप से नहीं बचा सकता जो उनके कथनानुसार नहीं चलता।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
The ultimate aim of your life is to experience the selfless love of God which is received through Bhakti.Bhakti,in fact,is not only observing a worshipping routine,as normally people do,but it is the feeling of your heart when you begin to experience the real affinity for your beloved Krishn.
----JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
----JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
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