Monday, July 29, 2019

हाय! सखि, कैसे ह्वै गये श्याम।
जो आधे–पलहूँ नहिं रहि सक, बिनु राधे इक ठाम।
सो ऐसे बेपीर भये कस, वीर! तज्यो ब्रजबाम।
तजि देइहैं पिय प्रीति–रीति अस, होति प्रतीति न नाम।
हौं भल जान न मान सखी यह, चैन कान्ह उर धाम।
होत ‘कृपालु’ कबहुँ उर संशय, हरि हैं आत्माराम।।
भावार्थ:–(श्यामसुन्दर के वियोग में गोपियों का विलाप-)
“हाय सखी! श्यामसुन्दर अब कैसे हो गये हैं? जो किशोरी जी के बिना आधे क्षण में ही बेचैन हो गये थे, वे ऐसे निष्ठुर कैसे हो गये जो किशोरी जी सहित समस्त ब्रजांगनाओं का परित्याग कर दिया? प्रियतम प्रीति की रीति को इस प्रकार त्याग देंगे, यह विश्वास नाम–मात्र को भी नहीं होता। अरी सखी! मैं भली-भाँति जानती हूँ, अतएव यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि श्यामसुन्दर चैन से होंगे”। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि फिर भी कभी–कभी हृदय में यह शंका हो जाती है कि श्यामसुन्दर तो आत्माराम हैं।
(प्रेम रस मदिरा:-विरह-माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।

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