Sunday, September 23, 2018

भगवान् के नाम में भगवान् का निवास है और वह भगवान् से अधिक इम्पोर्टेन्ट है। क्यों ? अगर भगवान् नन्द के यहाँ अवतार लेंगे और वह गोकुल या नंदगाँव में हैं। और बरसाने से कोई भक्त दर्शन करना चाहे अभी तुरंत। कैसे करेगा वह ? वह जायेगा नन्दगाँव फिर वहाँ कहाँ है श्रीकृष्ण देखेगा। और नाम सब जगह है। आप लेट्रीन बाथरूम में जहाँ कहीं आप बैठे हों भगवन्नाम ले सकते हैं। डरें नहीं कि ये गन्दी जगह में भगवान् का नाम कैसे लें ? भगवान् का नाम गंदे को शुद्ध कर देता है , भगवान् अशुद्ध नहीं होते। अनंत पाप तो भरा है मन में। उसी को तो शुद्ध करने के लिये प्रयत्न करना है। अगर हम यह कहें कि गन्दगी में भगवान् का निवास कराना बड़ी बुरी बात है तो हमारा मन कभी शुद्ध ही न होगा। कहाँ से हम मन को शुद्ध करके लायेंगे ? तो भगवान् का नाम लेंगे। इसलिये आप हर जगह ,हमेशा भगवान् को अपने साथ माने। हरि गुरु हमारी हर हरकत को देख रहें हैं। नोट कर रहें हैं। ये विश्वास बढ़ावें , यह रियलाइज़ (realize) करेंगे उतना ही जल्दी आगे बढ़ेंगे। देखो हमारे यहाँ धन्ना जाट वगैरह तमाम इतिहास भरा पड़ा है। सब लट्ठ गँवार , बेपढ़े लिखे। विश्वास कर लिया बस विश्वास मात्र से भगवत्प्राप्ति होती है।
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
श्री राम पूर्णब्रह्म सुखधाम,श्री राम कोटि काम अभिराम।
दशरथ अजिर बिहारी राम,कोटि मदन मनहारी राम।
राम नाम गुन लीला धाम, सुमिरिय छिन छिन आठों याम।
रामहिं गाइय सुमिरिय राम,भाव रहे उर महँ निष्काम।।
राग और द्वेष दो ही एरिया हैं सारे संसार में,बाँधे हुए है हम सबको। तो राग करना है तो बस हरि से और द्वेष करना है तो काम से क्रोध से लोभ से ईर्ष्या से द्वेष से करो। ये आने न पावें, हमारे हृदय को गंदा न करने पांवे। हमारी वह पूँजी है। हम जो कमाते हैं ,एक बार भी जो भगवान् का नाम लेते हैं,ये हमारी कमाई है। इसमें गड़बड़ न करे कोई।
संसारी #दोष कितने कम हुए, हमे इस पर हर समय दृष्टि रखनी है । हमारे स्वभाव में #अहमता#ममता कितनी कम हुई ,इस और ध्यान देना है । #स्वाभिमान कितना कम हुआ,अपने #अपमान का अनुभव होना कितना कम हुआ,#आत्मप्रशंसा कितनी अच्छी लगती है । संसारी विषयों के अभाव मेँ कितना #दुख होता है,उनके मिलने में कितना #सुख मिलता है, यह सब अपनी #आध्यात्मिक उन्नति को नापने का सबसे बढ़िया पैमाना है।
युगलवर, निरतत कुंज मझार।
देखति ललितादिक सखियन सब, पुनि–पुनि कहि बलिहार।
आजु होड़ परि गई निरत महँ, युगल नवल सरकार।
विविध अंग बहु भेद संग दोउ, हाव–भाव–विस्तार।
निरतत गति अविराम गौर–हरि, हार–जीत उर धार।
तब ललिता सखि उठि कह ‘बस करु, नाचत दोउ इकसार’।
दोउ ‘कृपालु’ कह ‘पक्षपात यह, ये गईं, ये गये हार’ ।।
भावार्थ:–युगल सरकार कुंज में नृत्य कर रहे हैं। ललितादिक सखियाँ बार–बार बलिहार! बलिहार! कह–कहकर विभोर हो रही हैं। आज नृत्य में श्यामा–श्याम में परस्पर होड़ पड़ गयी है। दोनों ही अनेक अंगों के अनेक भेदों द्वारा अनेक हाव–भाव दिखा रहे हैं। अपनी–अपनी विजय कामना से श्यामा श्याम अविराम गति से नृत्य कर रहे हैं। तब ललिता सखि ने कहा–अब युगल सरकार नृत्य बन्द कर दें, दोनों ही एक समान नाचते हैं। ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में दोनों ने ही ललिता के न्याय को पक्षपातपूर्ण बताया और एक दूसरे के प्रति यह कहा–“हम जीत गये, ये हार गयीं”। “हम जीत गयीं, ये हार गये।”

(प्रेम रस मदिरा:-निकुंज–माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
साधक का श्री महाराजजी से प्रश्न: महाराजजी आपका दैनिक कार्यक्रम क्या रहता है?
श्री महाराजजी द्वारा उत्तर: मेरा दैनिक कार्यक्रम तो बस एक ही है किसी भी प्रकार जीव को भगवान् की भक्ति करवाना। ये प्रयत्न करना कि ये जीव येन केन प्रकारेण भगवान् की ओर चले। इसके अलावा हमारा कोई कार्यक्रम नहीं होता।
तुम बुद्धि को स्थिर करो तथा यह सोचा करो कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ और वह भी अपने प्रेमास्पद की ही हूँ , उनके लिए ही हूँ। सदा यही सोचो कि मैं संसार की नहीं , मैं तो गोलोक वाले की हूँ। मुझे संसार अपने अन्डर में नहीं कर सकता। मैं मायिक धोखों के चक्कर में नहीं आऊँगी। सदा अपने प्रेमास्पद की कृपा पर बलिहार जाओ।
!!!!! जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु !!!!!
"#BHAKTI" :
It is described as an unconditional dedication of Heart,Body,and Mind to please RadhaKrishn.It is an experience of Devotional affinity,not just the fulfillment of religious rituals.It is a joy of desired servitude to the divine beloved,not the observance of a prescribed formality.It is a pure expression of natural,selfless love,not a prayer demanding the fulfillment of material needs.'Bhakti' is a loving affinity that grows on the base of humbleness,dedication and devotional emotions that are enlivened by remembering the name,virtues and leelas of RadhaKrishn."
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।
नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते॥
(भागवत १०-२९-१५)
#काम#क्रोध#स्नेह#भय किसी भी #भाव से अगर #मन में #भगवान् को लावे, तो उसका मन भगवान् से मिल कर #शुद्ध हो जायेगा। #गंगा जी में प्यार से #यमुना जी मिलें तो भी #प्रयाग से वह गंगा जी कहलायेंगी। और चाहे कोई कुल्ला कर दे #पापात्मा, वो कुल्ला, उसका मुँह से उच्छिष्ट पानी, गंगा जी नदी में मिल गया, अब वो गंगा जी हो गया। इतनी नदियाँ मिलती हैं गोमुख के बाद बंगाल की खाड़ी तक, कितने झरने मिलते हैं, सब गंगा जी बन गए।
गंगा जी गन्दी नहीं होतीं, जो गंगा जी से मिलता है, वो शुद्ध हो जाता है, गंगा बन जाता है।
संसार में भी यह बता रहे हैं।
रवि पावक सुरसरि की नाईं।
अग्नि में तमाम मुर्दे जलते हैं और हवन भी होता है।देवताओं को। अग्नि कहता है, हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा,
जो हमारे अन्दर आएगा, मैं अग्नि बना दूँगा। जला दूँगा।
मैं तो शुद्ध रहूँगा ही। सूर्य कितनी गन्दी चीज़ों में पड़ता है
और शुद्ध वस्तु में भी पड़ता है, लेकिन वो गन्दा नहीं होता। तो, भगवान् या महापुरुष जो शुद्ध हैं,
उससे अशुद्ध व्यक्ति प्यार करेगा, तो वो अशुद्ध शुद्ध हो जायेगा। शुद्ध अशुद्ध नहीं होगा।
मेरी श्यामा मेरे श्याम,विहरत नित वृन्दावन धाम।
मेरी श्यामा मेरे श्याम, इक शृंगार एक छविधाम।
मेरी श्यामा मेरे श्याम,दे दो भीख प्रेम निष्काम।
मेरी श्यामा मेरे श्याम,दोउन एक रूप द्वै नाम।
मेरी श्यामा मेरे श्याम, देत 'कृपालु' कृपा बिनु दाम।।
संसार में जिसे तुम बहुत अपना मानते हो........माँ , बाप , भाई, बीवी, दोस्त। अगर वो एक बार तुमसे कोई जरा सा झूठ बोल दे तो कितना फील करते हैं न आप लोग ?? कितना अपमान लगता है न अपना की हमसे झूठ बोला इसने जबकि मैं इसे कितना अपना मानता हूँ।
और कभी सोचा है कि....वो गुरु और भगवान .....जो तुम्हे सबसे ज्यादा अपना मानते है ...अरे मानना क्या है....... तुम्हारा वास्तव में माँ बाप भाई प्रियतम और है ही कौन .....सारे रिश्ते तो उन्हीं से हैं न , वो तुम सब की तरफ हर पल इसी आशा में देखते रहते है कि अबकी बार ये सच ही बोल रहा है , कीर्तन में जो लाइन बोल रहा है वो सच ही बोल रहा है । अबकी बार ये पूर्ण शरणागत हो जायेगा और मैं इसे प्रेम दान कर दूंगा। पर होता क्या है ......हम झूठ पे झूठ- झूठ पे झूठ-झूठ पे झूठ बोले चले जा रहे हैं आराम से ....कोई परवाह ही नहीं है। वो हमे परखते ही रहे जा रहे हैं अनंत काल से और हम झूठ बोले चले जा रहे हैं आराम से। संसार के रिश्तों को तो वास्तव में अपना मानते हैं और जो वास्तव में अपने हैं उनसे झूठ बोले जा रहे हैं....कमाल है !...कभी सोचा है कि कितना दुःख होता होगा उन्हें ?????
अपना अपमान अपमान है बस....#गुरु और #भगवान का अपमान अपमान नहीं है क्या ? उन्हें कितना फील होता होगा जरा सोचो।
------- तुम्हारा #कृपालु
राधा–तत्त्व का वर्णन सर्वथा अनिर्वचनीय है।
शुक, सनकादिक जीवन्मुक्त अमलात्मा परमहंस निर्विकल्प समाधि में ध्यान - द्वारा जिस ज्योतिर्मय ब्रह्म की आराधना करते हैं, वह ब्रह्म श्री किशोरी जी के चरण–कमलों की नखमणि–चंद्रिका ही है अर्थात् किशोरी जी के चरणों की नख–मणि चंद्रिका को ही रसिक लोग निराकार ब्रह्म मानते हैं। उस निराकार ब्रह्म के बारे में ही वेदों का कथन है कि वह ब्रह्म अदृष्ट, अव्यवहार्य, अग्राह्य, अलक्षण एवं अचिन्त्य आदि हैं। फिर वह ब्रह्म भी गीता के अनुसार जिसमें प्रतिष्ठित है, वे ब्रजेन्द्रनन्दन श्रीकृष्ण हैं । ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि वेदों के अनुसार वे श्रीकृष्ण भी राधिका की उपासना करते हैं । अतएव राधा–तत्त्व को जानने के चक्कर में न पड़कर तुम भी उनकी उपासना करो। वस्तुतस्तु श्री राधा, श्रीकृष्ण की ही आत्मा हैं । अतएव जीवात्माओं की भाँति परमात्मा भी अपनी आत्म–स्वरूपा श्री राधा की आराधना करता है।
( प्रेम रस मदिरा: श्रीराधा–माधुरी )
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति।
नींद जो है वो तमोगुण है। जाग्रत अवस्था में हम सत्वगुण में जा सकते हैं,रजोगुण में भी जा सकते हैं। लेकिन नींद जो है वो प्योर(pure) तमोगुण है। बहुत ही हानिकारक है। अगर लिमिट से अधिक सोओ तो भी शारीरिक हानी होती है। आपके शरीर के जो पार्ट्स हैं उनको खराब करेगा वो अधिक सोना भी। रेस्ट की भी लिमिट है। रेस्ट के बाद व्यायाम आवश्यक है। देखिये शरीर ऐसा बनाया गया है कि इसमें दोनों आवश्यक हैं। तुम्हें संसार में कोई जरूरी काम आ जाए,या कोई तुम्हारा प्रिय मिले तब नींद नहीं आती। इसलिए कोई फ़िज़िकल रीज़न नहीं कारण केवल मानसिक वीकनेस है। लापरवाही,काम न होना,नींद आने का प्रमुख कारण है। हर क्षण यही सोचो की अगला क्षण मिले न मिले अतएव भगवद विषय में उधार न करो।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
The Divine Love of Radha Krishn.......!!!
* "Your soul is yearning for such a love that could extend the peace and happiness of your mind to a non-ending limit and make your heart blissful forever."
* "Drink the nectar of Divine love of Both, Radha and Krishn, as They are one."
* "Fill up the pot of your heart with the nectar of Divine love of Radha Krishn and drink it all the time."
* "Krishn loves the loving heart. He submits Himself to His selfless lover."
* "The Divine nectar of Radha Krishn love is such that once the pot is filled it always remains full."
* "‘Radha’ name is Radha Herself. If you just realize this truth, it is enough to explode your feelings of love for Her and to really feel Her presence in front of you…"
In this world, there are few fortunate ones, who move towards God. Amongst them, only a few are fortunate enough to get the association of a genuine Saint. Amongst them too, there are a few who are fortunate enough to get the Divine knowledge. Nevertheless, there is one flaw, which does not let them progress. It is their habit of procrastination. When it comes to worldly activities, we do these immediately. We never defer activities like attaching our minds somewhere, or showing aversion somewhere, or insulting someone, or causing damage to someone. We do these instantly. But we always postpone God related activities. Vedas say – "Don’t leave anything for tomorrow. Who knows, tomorrow may not come in your life". So, do not procrastinate even for a moment. Start practicing devotion right from this moment.

जो व्यक्ति अनावश्यक अधिक बोलता है, उसी की लड़ाई अधिक होती है। वह स्वयं परेशान रहता है और दूसरों को भी परेशान करता है। अपना परमार्थ भी वह इसी दोष के कारण ही खराब कर लेता है। जो चुप रहता है, गड़बड़ी तो उससे भी होती है,लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पाती। संसार में भी उसको अधिक परेशानी नहीं होती और परमार्थ भी उसका ठीक रहता है।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा #राधाष्टमी_महोत्सवकी बहुत-बहुत शुभकामनायें ।
वृषभानुनंदिनी मादनाख्य महाभाव स्वरूपिणी कृष्णप्रिया श्रीराधा कृपाकांक्षी महानुभाव !
आप सभी को भोरीभारी बरसानेवारी के अवतरण दिवस की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ।
कृपा की मूरति श्री राधारानी के गुणों का वर्णन पूर्णतम पुरुषोतम ब्रह्म श्रीकृष्ण भी नहीं कर सकते, उन अकारण करुणामयी माँ की कृपा की थाह भी कोई नहीं पा सकता । हमारे परमपूज्य गुरुदेव जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ह्लादिनी शक्ति स्वरूपिणी नीलांबरधारिणी प्यारी श्यामा जू के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहते हैं –
"ऐसो सरल सुभाय श्री श्यामा जू को ! जैसो नहिं कहुँ सुन्यो न देख्यो, हौं कह भुजहिं उठाय" ।
अर्थात् हमारी श्यामा जू सरलता से भी अधिक सरल हैं, भोरी हैं । उनके जैसा अकारण करुण स्वभाव आज तक न किसी का सुना न देखा गया ये प्रतिज्ञापूर्वक कहा जा सकता हैं । वे जीवों पर केवल कृपा ही करती हैं, निरंतर कर रही हैं बिना पात्र - अपात्र का विचार किये । लेकिन हम जैसे अधम जीव उन अनंत कृपाओं का अनुभव नहीं कर पाते अपितु निरंतर उनसे शिकवा शिकायत ही करते रहते हैं । निरंतर माया के थपेड़े सहते हुए संसार में धोखा खाते हुए भी उन्हीं स्वार्थी अनित्य रिश्तेदारों को ही अपना सर्वस्व मानते हैं और ऐसी कृपावतारिणी माँ को अपना नहीं मान पाते । इसलिए जीव की स्थिति और दयनीय होती जाती है । जब तक हम वेदवाणी, गुरु वाणी पर पूर्ण विश्वास करके श्री राधारानी को अपना सर्वस्व नहीं मान लेंगें तब तक हम वास्तविक आनंद की कल्पना भी नहीं कर सकते ।
अतएव आइये राधाष्टमी के इस पावन पर्व पर हम अपनी सनातन ममतामयी माँ से यही प्रार्थना करें –
तू तो है समर्थ सर्वशक्तिमयी श्यामा, मन में समा जा आजा मेरे उर धामा ।।
मोहिं जनि लखु मैं तो पातक धामा, अपनो कृपालु स्वभाव लखु श्यामा ।।
तेरे तो हैं अगनित जन गुणधामा, एक निगुणी भी अपनी कर ले श्यामा ।।
माया के जूते लात खाया आठुयामा, अब तो बना ले मोहिं बेर भई श्यामा ।।
(श्यामा-श्याम गीत)
एक बार पुन: सभी श्री राधाकृष्ण चरणानुरागी भक्तों को किशोरी जू के प्राकट्य दिवस की शुभकामनायें एवं बधाई ।
भोरीभारी बरसानेवारी की जय। वृषभानुनंदिनी राधारानी की जय। कीर्तिकुमारी की जय। छोटी जी किशोरी जू की जय।