Saturday, December 2, 2017

श्याम हौं कब ब्रज बसिहौं जाय |
श्यामा श्याम नाम गुन गावत, कब नैनन झरि लाय |
कब विचरौं गह्वर वन वीथिन, राधे राधे गाय |
कब झूमत वृंदावन - कुंजनि, फिरौं हिये हुलसाय |
कब लपटाय लतन गोवर्धन, कहौं हाय पिय हाय |
कब लोटत ‘कृपालु’ ब्रज रज बिच, हौं जैहौं बौराय ||

भावार्थ - हे श्यामसुन्दर ! वह दिन कब आयेगा जब मैं सदा के लिए ब्रज में ही जाकर निवास करूँगा | कब राधा - कृष्ण के विविध नाम एवं गुण गाते हुए मेरी आँखों से निरंतर अश्रु प्रवाह होगा | कब गह्वरवन की गलियों में प्रेमपूर्वक ‘राधे, राधे’ पुकारते हुए विचरण करूँगा | कब वृन्दावन के कुंजों में उल्लास भरे भावों से झूमते हुए फिरूँगा | कब गोवर्धन की लताओं का आलिंगन करके, अत्यन्त अधीर होकर तुम्हारे मधुर - मिलन की आकांक्षा में ‘हाय ! पिय हाय !!’ ऐसा कहूँगा | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि कब ब्रज की धूल में लोटते हुए मैं प्रियतम के प्रेम में विभोर होकर वास्तविक पागल बन जाऊँगा |
( प्रेम रस मदिरा दैन्य - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

No comments:

Post a Comment