Monday, November 13, 2017

भगवान अथवा संत से कोइ भी संबंध मानने वाला भी तर जाता है, लेकिन इस संबंध का निरन्तर और अनन्य होना आवश्यक है, उन दो के अतिरिक्त और किसी में उसकी आसक्ति होना अथवा और किसी का सहारा होना यह संबंध की अनन्यता नहीं है । जब तक अनन्य संबंध नहीं होगा तब तक उसकी गति नहीं है।
......श्री महाराजजी।

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