Saturday, February 4, 2017

जयति जय, जय सद्गुरु महाराज |
छके युगल रस रास सरस जनु, मूर्तिमान रसराज |
बिनु कारण करुणाकर जाकर, अस स्वभाव भल भ्राज |
बरबस पतितन देत प्रेमरस, अस रसिकन सरताज |
डूबत आपु डुबावत जन कहँ, प्रेमसिंधु - ब्रजराज |
हौं ‘कृपालु’ गुरुचरण शरण गहि, भयो धन्य जग आज ||

भावार्थ - श्री सद्गुरुदेव की जय हो, जय हो | प्रेमानन्द में निमग्न गुरुदेव मानो श्यामा - श्याम के मूर्तिमान रसावतार ही हैं | उनका सहज स्वभाव ही है अकारण करुणा करके जीवोद्धार करना | गुरुदेव ऐसे रसिक शिरोमणि हैं कि पतितों को भी हठात् प्रेमानन्द प्रदान कर देते हैं; उस रस में स्वयं भी डूब जाते हैं; साथ ही शरणागत शिष्य को भी डुबा देते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं मैं तो उन सद्गुरु के चरणों की शरण ग्रहण करके आज धन्य हो गया |
( प्रेम रस मदिरा सद्गुरु - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

No comments:

Post a Comment