Thursday, February 8, 2018

भक्ति मार्ग के साधक को हरि विमुखों का संग त्याग करना परमावश्यक है। यदि कोई धर्मात्मा व्यक्ति भी भक्ति का विरोध करता है तो उसका त्याग कर देना चाहिए क्योंकि कुसंग ग्रहण करने योग्य नहीं है।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

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