Wednesday, January 3, 2018

हमारे गुरुदेव.........'हमारे कृपालु गुरुवर'....'हमारे रखवार'...'हमारी सरकार'.....!!!!

हमारे गुरुदेव कब क्यों और कैसे किसी आध्यात्मिक कार्य को संपादित करते है यह जान पाना सर्वथा असंभव है। गूढ़तम आध्यात्मिक रहस्यों से आच्छादित उनका व्यवहार का लवलेष भी अगर पकड़ में आजाये तो हमें अपना सौभाग्य मानना चाहिये। यूं तो हम संसारी जन अपने स्वभाव,व अज्ञानवश अनेकों प्रश्न दर प्रश्न करते हैं,लेकिन हमारी इन भोली जिज्ञासाओं का समाधान शब्द से नहीं सत्संग से ही कुछ संभव हो सकता है। महापुरुष तो जीव कल्याण का कार्य अनवरत रूप से करता ही रहेगा.......ये उनका 'स्वभाव' है- 'कृपालु' जो हैं-अपना विरद तो उन्हें निभाना ही है।
इसलिए हमारे गुरुदेव का "प्रेम रस सिद्धान्त" एवं उनकी द्वारा बताई 'साधना पद्धति' इस युग की एक युगांतकारी उपलब्धि है। महापुरुष इतिहास का साक्षी ही नहीं वरन नित नए-नए इतिहास का रचियता भी होता है।हम नहीं समझ सकते अपने कृपालु गुरुदेव को। इसलिए जब भी कहीं आचार्यवर के विषय में कुछ कथ्य या लेख प्रस्तुत करते हैं,अगले ही पल अपनी मूर्खता पर लज्जित हो जाते हैं। अपराध बोध व ग्लानि से मन विचलित हो जाता है-हजारों-हजारों साधक मानस पटल पर सजीव हो जाते हैं।कहीं कोई हमारी इस धृष्टा से आहत तो नहीं हो जाएगा-लगता है सभी वर्जना की मुद्रा में कह रहे हैं-ये क्या कर रहे हो? समुद्र मथने का प्रयास? भूमंडल नापने की चेष्टा,आध्यात्मिक नियम के विपरीत कर्म? असीम को बांधने की मूर्खता-क्योंकि जिन गुरुदेव के सन्मुख समय अपनी गति भूल जाता है,वक्ता अपनी वाकचातुरी और ज्ञानी ज्ञान गठरिया खो देता है ऐसे एक दिव्य एक्सरे मशीन के सामने जब आत्मा,मन,प्राण,सब के सब नग्न व असहाय से हो जाते हैं तब कौन करे उस 'मशीन' का अवलोकन,कैसे हो उसकी कार्य पद्धति का विवेचन।
वैसे तो श्री महाराजजी अपने सरल-सरस आत्मीयता के साथ नन्हें-नन्हें बच्चों से भी खेलते दिखाई पड़ते हैं,लेकिन सच ये है वे हमारे अंत:करण में बड़ी ही सावधानी से बैठे हैं। पल भर का भी हमारा कोई भी चिंतन,कर्म उनकी पकड़ से छूट नहीं सकता---इस 'सत्य' पर अगर हम विश्वास कर ले तो कुछ जानने या कहने को शेष नहीं रह जाता। यह 'सत्य' जो अनंत सूर्य हैं,जीव जगत,का जीवन है-प्रकार्तिक प्रकाश से तो हम बाहर देखते हैं,वह भी सीमित दृष्टि पाठ तक लेकिन इस 'सत्य' के प्रकाश से आत्मा को देखना व जानना है-चंचल भोले मन को नियंत्रित करना है।फिर उस मन को त्याग वैराग्य दया क्षमा परोपकार आदि देवी गुणों से क्षृंगार करना है। फिर उसके बाद ही तो भगवत प्रेम के हिंडोले पर विहार कर सकेगा साधक।
राधे-राधे।

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