अरे
मूर्ख मन ! इस परम अन्तरंग तत्वज्ञान को समझ ले। तीन तत्व नित्य हैं –
पहला ईश्वर, दूसरा जीव, एवं तीसरा तत्व माया । इनमें माया चिदानन्दमय ईश्वर
की जड़ शक्ति है एवं जीव चिदानन्दमय ईश्वर का सनातन दास है, जिसे वेदादिकों
में अंश शब्द से विहित किया गया है। जीवात्मा देही है तू उसको देह मान रहा
है, बस यही अनादिकालीन तेरा अज्ञान है । जो इस बात को जितना जान लेता है,
उतना ही उस पर विश्वास भी कर लेता है, उसके जानने की यही पहिचान है। पुन:
जो जितनी मात्रा में उपर्युक्त बात पर विश्वास कर लेता है, उतनी ही मात्रा
में अपने आप उसका श्यामसुन्दर के चरणों में अनुराग हो जाता है।‘श्री कृपालु
जी’ कहते हैं :- अरे मन ! अब मनमानी छोड़ दे, एवं मनमोहन में रूपध्यान
द्वारा अपने आप को अनुरक्त कर ।
( प्रेम रस मदिरा: सिद्धान्त–माधुरी )
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
--- सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति।
( प्रेम रस मदिरा: सिद्धान्त–माधुरी )
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
--- सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति।