एक साधक का प्रश्न :- शरीर न चले तो साधना कैसे हो ?
श्री महाराज द्वारा उत्तर :- साधना माने मन साधना। साधना मन को ही करनी
है। कैंसर का मरीज़ सोचता है -मैं मर जाऊंगा तो मेरी गृहस्थी का कय होगा
आदि। इसमें शरीर नहीं थक रहा है। मन का वर्क हो रहा है। जब कोई शरीर के
महत्व को सोचने के स्थान पर सोचेगा " मेरा ( जीवात्मा ) का क्या होगा ,
श्याम सुन्दर मुझे नहीं मिले , यह सोचकर आंसू बहाता रहेगा। अगर नींद आ गयी
तो समझो इम्पोर्टेंस नहीं समझा।"
------------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
श्री महाराज द्वारा उत्तर :- साधना माने मन साधना। साधना मन को ही करनी है। कैंसर का मरीज़ सोचता है -मैं मर जाऊंगा तो मेरी गृहस्थी का कय होगा आदि। इसमें शरीर नहीं थक रहा है। मन का वर्क हो रहा है। जब कोई शरीर के महत्व को सोचने के स्थान पर सोचेगा " मेरा ( जीवात्मा ) का क्या होगा , श्याम सुन्दर मुझे नहीं मिले , यह सोचकर आंसू बहाता रहेगा। अगर नींद आ गयी तो समझो इम्पोर्टेंस नहीं समझा।"
------------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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