श्री महाराज जी द्वारा .......... मेरे प्रिय साधक .....
श्री कृष्ण ही समस्त जीवों के अंशी एवं जीव उनके अंश हैं। अतएव जीव का चरम
लक्ष यही है कि अपने अंशी ( स्वामी , सखा तथा सर्वस्व ) की नित्य दासता
प्राप्त करें।
वह कैंकर्य उनके दिव्य प्रेम ( श्री कृष्ण की सबसे अंतरंग शक्ति ) से ही प्राप्त होगा।
वह दिव्य प्रेम किसी रसिक प्रेमी गुरु से ही मिलेगा।
वह गुरु साधक की अंतःकरण शुद्धि पर ही प्रेमदान करेगा।
वह अंतःकरण शुद्धि गुरु की बतायी साधना से ही होगी।
अतएव प्रथम जीव को गुरु - कृपा प्राप्ति हेतु साधना करनी है।
श्री कृष्ण ही समस्त जीवों के अंशी एवं जीव उनके अंश हैं। अतएव जीव का चरम लक्ष यही है कि अपने अंशी ( स्वामी , सखा तथा सर्वस्व ) की नित्य दासता प्राप्त करें।
वह कैंकर्य उनके दिव्य प्रेम ( श्री कृष्ण की सबसे अंतरंग शक्ति ) से ही प्राप्त होगा।
वह दिव्य प्रेम किसी रसिक प्रेमी गुरु से ही मिलेगा।
वह गुरु साधक की अंतःकरण शुद्धि पर ही प्रेमदान करेगा।
वह अंतःकरण शुद्धि गुरु की बतायी साधना से ही होगी।
अतएव प्रथम जीव को गुरु - कृपा प्राप्ति हेतु साधना करनी है।
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