जिस
प्रेम के द्वारा संसार की कामना नहीं कर रहा है किन्तु उससे मुक्ति की
कामना कर सकता है। मुक्ति से भी ईश्वर की प्राप्ति होती है - एकत्व मुक्ति
की। लेकिन उससे भी ऊँची स्थिति है मुक्ति की भी कामना न करके भगवान् का
निष्काम प्रेम चाहना।
..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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