बार
बार सोचो , बार बार सोचो, बस वो मिल जायेंगे। हम इन्द्रियो से तो बहुत
साधना करतें हैं , जबान से राम राम , श्याम श्याम, राधे राधे, तीर्थो में
जाते हैं , मंन्दिरों में जाते है ,पैर से मार्चिंग करते हैं ,पूजा करते है
हाथ से, आँख से देखते है मूर्ति को, कान से सुनते है भागवत पूराण , गर्ग
पूराण , गरुड़ पूराण वगैरह ये इन्द्रियों का वर्क है। भगवान कहते हैं ये सब
हम नहीं चाहते, न नोट करते है इसको हम। तुम्हारे मन का अटैचमेंट कितने
परसेंट हुआ भगवान मे बस इसको ही प्यार, भक्ति, साधना कहते है।
...........श्री महाराजजी।
...........श्री महाराजजी।
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