जीव
का चरम लक्ष्य यही है कि वह अपने शरण्य की सेवा करे उनकी इच्छा में इच्छा
रखे। अनन्य भाव द्वारा सम्पूर्ण जगत से मन को पृथक रखे। सदा अपने शरण्य को
अपने साथ माने। संसार से कम सम्पर्क रखे। दीनता नम्रता मधुर भाषण का अभ्यास
करे। सदा यही सोचे कि वे ही हमारे हैं।
..............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
..............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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